विदेश की खबरें | अदालत से प्रचंड पर मुकदमे का आदेश जारी होने पर नेपाल के छह दलों ने जारी किया बयान
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

काठमांडू, छह मार्च नेपाल के नौ राजनीतिक दलों ने उन मुद्दों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है जो संक्रमणकाल संबंधी न्याय प्रक्रिया को लेकर हाल में उठाये गये हैं।

कुछ ही दिन पहले शीर्ष अदालत ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘‘प्रचंड’’ के विरूद्ध माओवादी आंदोलन के दौरान 5000 मौतों की जिम्मेदारी लेने को लेकर रिट याचिकाएं दायर करने का आदेश दिया था।

इन दलों की ओर से जारी संयुक्त बयान में शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला दिये बगैर कहा गया है, ‘‘ संक्रमणकाल संबंधी न्याय प्रक्रिया को लेकर हाल में उठाये गये मुद्दों की ओर हमारा गंभीर ध्यान आकृष्ट किया गया है।

बयान में कहा गया है, ‘‘ संविधान एवं समग्र शांति समझौते के अनुसार हम संक्रमणकाल संबंधी न्याय प्रक्रिया का समापन करने के लिए कटिबद्ध हैं। कानून की समीक्षा से जुड़े बाकी काम भी शीघ्र ही पूरे किये जायेंगे।’’

इन दलों ने कहा कि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुसार एक विधेयक संसद के वर्तमान सत्र में पेश किया जाएगा।

पहले तो इन दलों की बैठक राष्ट्रपति चुनाव के विषय पर चर्चा करने के लिए बुलायी गयी थी लेकिन उसमें शीर्ष अदालत के आदेश का विषय छाया रहा।

नवगठित गठबंधन में जो दल हैं वे नेपाली कांग्रेस, सीपीएन (माओवादी सेंटर), जनता समाजबादी पार्टी, सीपीएन (यूनीफाइड सोशलिस्ट), लोकतांत्रिक समाजबादी पार्टी, नागरिक उन्मुक्ति पार्टी, जनमत पार्टी, राष्ट्रीय जनमोर्चा और नेपाल समाजबादी पार्टी हैं।

गठबंधन की इस बैठक से महज कुछ घंटे पहले प्रचंड की पार्टी, माओवादी सेंटर के कुछ नेताओं और पूर्व माओवादी नेताओं ने प्रचंड के विरूद्ध रिट याचिका दायर करने के शीर्ष अदालत के आदेश की कड़ी आलोचना की।

सीपीएन (माओवादी सेंटर) के अध्यक्ष प्रचंड ने 15 जनवरी 2020 को कहा था कि दशक तक जिस माओवादी पार्टी ने माओवादी आंदोलन चलाया, उसका नेता होने के नाते वह 5000 मौतों की जिम्मेदारी लेंगे और सरकार को बाकी मौतों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

प्रचंड ने यहां माघा उत्सव को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘ मुझपर 17000 लोगों की मौत का आरोप लगा है जो सच नहीं है। लेकिन मैं संघर्ष के दौरान 5000 लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेने को तैयार हूं।’’

उन्होंने कहा था कि बाकी 12000 लोग संघीय शासन द्वारा मौत की नींद सुलाये गये थे।

ज्ञानेंद्र आरान और कल्याण बुढाठोकी ने उच्चतम न्यायालय में अलग -अलग रिट याचिकाएं दायर कर अनुरोध किया कि इस बयान को लेकर प्रचंड की जांच करायी जाए और उनपर मुकदमा चलाया जाए। ये दोनों वकील हैं और उस दौर की हिंसा के भुक्तभोगी रहे हैं।

प्रशासन ने पिछले साल नवंबर में मामला दर्ज करने से यह दावा करते हुए इनकार कर दिया था कि यह मुद्दा संक्रमणकाल के न्याय से जुड़ा है तथा सत्य एवं सुलह आयोग इन मामलों को देख रहा है।

शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने अपने प्रशासन को प्रचंड के खिलाफ माओवादी आंदोलन के दौरान 5000 मौतों की जिम्मेदारी लेने को लेकर रिट याचिकाएं दर्ज करने का आदेश दिया।

व्यस्त कार्यक्रम एवं श्रमबल की कमी के चलते मामला रविवार को दर्ज नहीं किया जा सका और ऐसी संभावना है कि होली के बाद दर्ज किया जाएगा। होली यहां सोमवार को है।

काठमाडू पोस्ट ने आरान के हवाले से बताया कि अदालत प्रशासन ने इस फैसले की प्रति रविवार शाम को सौंपी ।

आरान ने कहा, ‘‘ हम मंगलवार को याचिका दायर करेंगे क्योंकि सोमवार को होली के कारण छुट्टी है।’’

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