नयी दिल्ली, 19 दिसंबर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ शनिवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें नेताओं के एकजुट होकर चलने और संगठन को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया।
इस बैठक में ऐसे कई नेता मौजूद रहे, जिन्होंने सक्रिय नेतृत्व और व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग को लेकर पहले पत्र लिखा था।
बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता पवन कुमार बंसल ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘बैठक में सकारात्मक चर्चा हुई। सोनिया गांधी ने कहा कि हम बड़ा परिवार हैं और पार्टी को मजबूत करना है। यही बात राहुल गांधी ने कही।’’
बंसल ने कहा कि नए अध्यक्ष के चुनाव को लेकर चर्चा नहीं हुई क्योंकि इसको लेकर प्रक्रिया पहले से ही चल रही है।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बताया, ‘‘आज यह पहली बैठक थी। आगे ऐसी बैठकें और होंगी। शिमला और पंचमढ़ी की तर्ज पर चिंतन शिविर भी होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अच्छे वातावरण में चर्चा हुई। पार्टी को मजबूत करने के लिए जो भी मुद्दे उठाए गए थे, उनका संज्ञान लिया जाएगा। आगे कुछ लोग बैठेंगे और उनकी बात भी सुनी जाएगी।’’
राहुल गांधी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ए के एंटनी, अंबिका सोनी, अशोक गहलोत, पी चिदंबरम, कमलनाथ और हरीश रावत की मौजूदगी में पत्र लिखने वाले नेताओं की सोनिया से मुलाकात हुई।
सोनिया के आवास 10 जनपथ पर हुई इस बैठक में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर और कई अन्य नेता शामिल हुए। ये नेता पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल थे।
सूत्रों ने बताया कि सोनिया गांधी के साथ इन नेताओं की मुलाकात की भूमिका तैयार करने में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यममंत्री कमलनाथ की अहम भूमिका थी। कमलनाथ ने कुछ दिनों पहले भी सोनिया से मुलाकात की थी।
इस बैठक से एक दिन पहले शुक्रवार को पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस के 99.99 फीसदी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की भावना है कि राहुल गांधी एक बार फिर से पार्टी का नेतृत्व करें।
उल्लेखनीय है कि गत अगस्त महीने में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल समेत कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी का सक्रिय अध्यक्ष होने और व्यापक संगठनात्मक बदलाव करने की मांग की थी। इसे कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार को चुनौती दिए जाने के तौर पर लिया। कई नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की।
बिहार विधानसभा चुनाव और कुछ प्रदेशों के उप चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भी, आजाद और सिब्बल ने पार्टी की कार्यशैली की खुलकर आलोचना की थी और इसमें व्यापक बदलाव की मांग की थी। इसके बाद वे फिर से कांग्रेस के कई नेताओं के निशाने पर आ गए।
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