रिपोर्ट: इंटरनेट पर दुर्व्यवहार का सामना करती लड़कियां
एक नयी रिपोर्ट से पता चला है कि इंटरनेट पर लड़कियों पर लगातार नजर रखी जाती हैं.
एक नयी रिपोर्ट से पता चला है कि इंटरनेट पर लड़कियों पर लगातार नजर रखी जाती हैं. वे दुर्व्यवहार का सामना करती हैं. इन सब कारणों से वे सेल्फ सेंसरशिप करती हैं.नयी रिपोर्ट में पाया गया है कि गहराई तक व्याप्त लिंग मानदंड, पूर्वाग्रह और धारणाएं लड़कियों और युवा महिलाओं की इंटरनेट का उपयोग करने की क्षमता को प्रभावित कर रही हैं. यही वजहें उनकी ऑनलाइन गतिविधि को प्रभावित कर रही हैं और सूचना और काम तक उनकी पहुंच को नुकसान पहुंचा रही हैं.
इथियोपिया, केन्या, नाइजीरिया, तंजानिया और भारत समेत आधा दर्जन से अधिक देशों में 14-21 आयु वर्ग के 10,000 से अधिक इंटरनेट यूजर्स और उनके माता-पिता के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लड़कियों की लगातार निगरानी की जा रही है और उन्हें बताया जा रहा है कि वे ऑनलाइन असुरक्षित हैं और सक्षम नहीं हैं. जिस कारण "विश्वास का संकट पैदा हो रहा है."
इंटरनेट और लड़कियां
गैर-लाभकारी संस्था गर्ल इफेक्ट, मलाला फंड, संयुक्त राष्ट्र की बच्चों की एजेंसी यूनिसेफ और वोडाफोन अमेरिका की रिपोर्ट में कहा गया है, "इसके परिणामस्वरूप लड़कियां अधिक सुरक्षित उपाय अपना रही हैं और दूसरों के साथ जुड़ते समय और निजी जानकारी ऑनलाइन साझा करते समय अधिक रूढ़िवादी व्यवहार कर रही हैं."
रिपोर्ट में कहा गया है, "यह रवैया न केवल लड़कियों की पहुंच और इस्तेमाल को प्रभावित कर रहा है बल्कि उनका आत्मविश्वास भी प्रभावित हो रहा है और अपने सामाजिक, शैक्षिक और बौद्धिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए इन उपकरणों का उपयोग करने की उनकी क्षमता के बारे में उनकी अपनी धारणा को आकार दे रहा है."
ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करतीं लड़कियां
दुनिया भर में सरकारों के प्रयासों के बावजूद लैंगिक डिजिटल विभाजन अब भी कायम है. इस साल की शुरुआत में यूनिसेफ के एक अध्ययन से पता चला कि 54 देशों में औसत लिंग समानता अनुपात 71 है, जिसका मतलब है कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले प्रत्येक 100 किशोर लड़कों और युवा पुरुषों के मुकाबले केवल 71 किशोर लड़कियां और युवा महिलाएं ही ऐसा करती हैं.
इसके साथ महिलाओं को अधिक ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है और ऑनलाइन उत्पीड़न के कारण लड़कियों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक और इंस्टाग्राम छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
गर्ल इफेक्ट की रिपोर्ट में पाया गया कि डिजिटल रूप से जुड़े युवाओं में लड़कों की तुलना में 12 फीसदी अधिक लड़कियों ने कहा कि वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते समय आत्म-जागरूक महसूस करती हैं. समान उम्र के लड़कों की तुलना में ऑनलाइन तस्वीरें या कमेंट पोस्ट करने की उनकी संभावना 11 फीसदी कम है.
गर्ल इफेक्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि लड़कियों का इंटरनेट से जुड़ना पूर्वाग्रहों और दुर्व्यवहार के डर से प्रतिबंधित है, इसलिए वे खुद को टेकसैवी के रूप में नहीं देखती हैं और इंटरनेट को वे ऐसा नहीं मानती कि वह उनके लिए है.
रिपोर्ट कहती है, "यह एक दुष्चक्र बनाता है जिससे लड़कियां तकनीक से बचती हैं क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि यह उनके लिए है और फिर तकनीक को 'उनके लिए नहीं' के रूप में देखा जाता है क्योंकि वे इससे बचती आई हैं."
शोध समूह निकोरे एसोसिएट्स की जेंडर पॉलिसी विशेषज्ञ मिताली निकोरे ने कहा जो किशोर लड़कियां ऑनलाइन अपने व्यवहार की जांच, रेगुलेट और सीमित करती हैं, बाद में वह "अक्सर इन गुणों को अपने कार्यस्थल पर ले जाती हैं, जहां उन्हें अपने कौशल का प्रदर्शन करने और रणनीतिक संबंध बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है."
निकोरे ने कहा, "यह कार्यस्थलों पर महिलाओं के व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, उनके श्रम बाजार के अवसरों और पेशेवर उन्नति को बाधित करता है."
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)