‘वैश्विक हिंदुत्व का खंडन’ सम्मेलन हिंदू विरोधी : अमेरिकी सीनेटर

अमेरिका के एक प्रतिष्ठित सीनेटर ने ‘‘वैश्विक हिंदुत्व का खंडन’’ सम्मेलन आयोजित किए जाने की कड़ी निंदा की और इसे हिंदू विरोधी बताया है. इस सम्मेलन को लेकर हिंदू अमेरिकियों के बीच आक्रोश पैदा हो गया है और कई विश्वविद्यालयों ने आयोजकों को कार्यक्रम स्थल से उनके प्रतीक चिह्न हटाने को कहा है.

अमेरिका का झंडा (Photo Credits: Pixabay)

वाशिंगटन, 1 सितंबर : अमेरिका (America) के एक प्रतिष्ठित सीनेटर ने ‘‘वैश्विक हिंदुत्व का खंडन’’ सम्मेलन आयोजित किए जाने की कड़ी निंदा की और इसे हिंदू विरोधी बताया है. इस सम्मेलन को लेकर हिंदू अमेरिकियों के बीच आक्रोश पैदा हो गया है और कई विश्वविद्यालयों ने आयोजकों को कार्यक्रम स्थल से उनके प्रतीक चिह्न हटाने को कहा है. ओहायो राज्य के सीनेटर नीरज अंतानी ने एक बयान में कहा, ‘‘यह सम्मेलन अमेरिका में हिंदुओं पर एक घृणित हमले का प्रतिनिधित्व करता है और हम सभी को इसकी निंदा करनी चाहिए क्योंकि यह हिंदुओं के खिलाफ नस्लवाद और धर्मांधता से अधिक और कुछ नहीं है. मैं हिंदू विरोधी भावना के खिलाफ हमेशा दृढ़ता से खड़ा रहूंगा. मैं ‘वैश्विक हिंदुत्व का खंडन’ सम्मेलन की कड़ी निंदा करता हूं.’’

अंतानी अमेरिका के इतिहास में निर्वाचित सबसे युवा हिंदू नेता हैं और वह ओहायो में भारतीय मूल के पहले अमेरिकी सीनेटर हैं. जिस सम्मेलन को लेकर यह विवाद हो रहा है उसका आयोजन 10-12 सितंबर को किया जाना है. इसके आयोजकों ने कहा कि वे अपने नाम जाहिर नहीं करना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने कई प्रख्यात वक्ताओं और विद्वानों के नाम सार्वजनिक किए हैं जो इस कार्यक्रम में भाग लेंगे. ‘कोलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ ने सम्मेलन के विरोध में विश्वविद्यालयों, विद्वानों और विभिन्न पक्षकारों को 3,50,000 से अधिक ईमेल लिखे हैं. यह भी पढ़ें : Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर पुलिस ने देवी दुर्गा की 1,200 साल पुरानी मूर्ति बरामद की

रटगर्स यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष जोनाथन होलोवे ने एक ईमेल में इस संगठन को कहा कि उसे यह जानकारी नहीं थी कि इस सम्मेलन के आयोजक उनके विश्वविद्यालय के प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक ईमेल में रटगर्स यूनिवर्सिटी ने कहा है कि वह इस सम्मेलन की प्रायोजक नहीं है. डलहौजी विश्वविद्यालय ने आयोजकों से उनकी प्रचार सामग्री से उसका प्रतीक चिह्न हटाने का अनुरोध किया है. इस बीच, विद्वानों और अकादमिक समुदाय के सदस्यों के एक समूह ने एक संयुक्त बयान में इस कार्यक्रम का समर्थन किया है.

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