देश की खबरें | दुष्कर्म मामला: विवादास्पद टिप्पणियों के लिए न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई की एनएफआईडब्ल्यू की मांग

नयी दिल्ली, 26 मार्च भारतीय महिलाओं के राष्ट्रीय महासंघ (एनएफआईडब्ल्यू) ने बुधवार को दुष्कर्म के आरोपों पर विवादास्पद टिप्पणियां करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्रा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।

न्यायाधीश ने कहा था कि ‘‘महिला के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा खींचना’ बलात्कार का प्रयास करने का अपराध नहीं है।

महिला अधिकार निकाय ने एक बयान में कहा कि इस तरह की टिप्पणियां पितृसत्तात्मक विचारधारा को और अधिक संस्थागत और वैध बनाएंगी।

यह बयान उच्चतम न्यायालय द्वारा 17 मार्च के फैसले में न्यायमूर्ति मिश्रा की टिप्पणियों पर रोक लगाने के तुरंत बाद आया।

एनएफआईडब्ल्यू ने बयान में कहा, ‘‘एनएफआईडब्ल्यू न्यायमूर्ति मिश्रा को तत्काल हटाने की मांग करता है, जिन्होंने मौजूदा कानूनों के बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञता दिखाई और समानता और न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने में बुरी तरह विफल रहे, जिसके लिए एक न्यायाधीश के रूप में वह कर्तव्यबद्ध हैं।’’

इसमें कहा गया कि इस तरह की टिप्पणियां ‘‘महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को कमतर करने का प्रयास हैं जो पितृसत्तात्मक विचारधारा को और अधिक संस्थागत एवं वैध बनाएंगी।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए एनएफआईडब्ल्यू की अध्यक्ष सईदा हामिद ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है।

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका ही हमारी एकमात्र उम्मीद है। जब वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले जैसे फैसले पेश करते हैं, तो यह चौंकाने वाला होता है।’’

हामिद ने कहा, ‘‘ऐसे कई शर्मनाक फैसले हैं, जिनमें न्यायाधीश ने कानूनों की अनदेखी की है। पॉक्सो अधिनियम को मजाक बना दिया गया है... एक के बाद एक, ऐसे फैसले आ रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि इतने लंबे समय से चल रहे महिला आंदोलन और संविधान सभी को नजरअंदाज कर दिया गया है।

एनएफआईडब्ल्यू की नेता एनी राजा ने उच्च न्यायालय के फैसले पर उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने का स्वागत किया और कहा कि हाल के दिनों में अदालतों द्वारा कई महिला-विरोधी फैसले दिए गए हैं।

एनएफआईडब्ल्यू की महासचिव निशा सिद्धू ने कहा कि इस फैसले ने महिला आंदोलन को हाशिये पर धकेल दिया है।

कार्यकर्ताओं ने मांग की कि न्यायाधीशों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण आयोजित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कई ऐसे फैसले भी सूचीबद्ध किए, जिनके बारे में उनका दावा है कि वे महिला विरोधी मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं।

सूची में ‘अजय दिवाकर बनाम उप्र राज्य’ मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया 2024 का फैसला शामिल है जिसमें उसने पॉक्सो अधिनियम के तहत गिरफ्तार एक व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह नाबालिग पीड़िता से शादी करेगा।

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