देश की खबरें | संपत्तियों पर अतिक्रमण न हो यह सुनिश्चित करने के लिए रेलवे समान रूप से जिम्मेदार: सुप्रीम कोर्ट
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि रेलवे यह सुनिश्चित करने के लिए ‘‘समान रूप से जिम्मेदार’’ है कि उसकी संपत्तियों पर कोई अतिक्रमण नहीं हो और इस मुद्दे के संज्ञान में आने के तुरंत बाद उसे अनधिकृत कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
नयी दिल्ली, 16 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि रेलवे यह सुनिश्चित करने के लिए ‘‘समान रूप से जिम्मेदार’’ है कि उसकी संपत्तियों पर कोई अतिक्रमण नहीं हो और इस मुद्दे के संज्ञान में आने के तुरंत बाद उसे अनधिकृत कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने गुजरात और हरियाणा में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने से संबंधित दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि रेलवे और संबंधित अधिकारियों को अतिक्रमण की अनुमति देने और सही तरीके से कार्रवाई नहीं करने के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि गुजरात में सूरत-उधना से जलगांव रेलवे लाइन परियोजना अब भी अधूरी है, क्योंकि रेलवे की संपत्ति पर 2.65 किलोमीटर की सीमा तक अनधिकृत संरचनाएं खड़ी हैं।
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि रेलवे इन संरचनाओं के कब्जाधारियों को तुरंत नोटिस जारी करे, जो शेष परियोजना को पूरी करने के लिए तुरंत आवश्यक है। न्यायालय ने इन कब्जाधारियों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित परिसर खाली करने का रेलवे को निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘इतना ही नहीं, चूंकि रेलवे के पास रेलवे संपत्तियों पर अनधिकृत कब्जाधारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने की शक्ति है, इसलिए रेलवे के संबंधित अधिकारियों के संज्ञान में लाये जाने के तुरंत बाद संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही का सहारा लेना चाहिए।‘‘
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन संरचनाओं को तुरंत खाली करने की आवश्यकता नहीं है, उनके संबंध में रेलवे प्रस्तावित नोटिस में परिसर को खाली करने और ढांचा हटाने के लिए छह सप्ताह का समय दे सकता सकता है।
पीठ ने कहा कि यदि कब्जाधारी अनधिकृत संरचना खाली करने में विफल रहता है, तो पश्चिम रेलवे उपयुक्त कानूनी कार्रवाई शुरू करने या स्थानीय पुलिस की सहायता से इस तरह के ढांचे को जबरन हटाने के लिए स्वतंत्र होगी।
इसने संबंधित क्षेत्र के आयुक्त या पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बेदखली नोटिस में उल्लिखित अनधिकृत संरचनाओं को हटाने और विध्वंस की प्रक्रिया शुरू करने के लिए रेलवे प्राधिकरण को पर्याप्त सहयोग और बल प्रदान किया जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन अनधिकृत संरचना के कब्जाधारियों को विध्वंस कार्रवाई में हटाया जाता है, उन्हें छह महीने की अवधि के लिए प्रति माह 2,000 रुपये का भुगतान किया जाएगा।
पीठ ने कहा कि शुरू में राहत का भुगतान संबंधित जिले के कलेक्टर करेंगे और रेलवे, संबंधित नगर निगम और राज्य सरकार समान रूप से इसे साझा करेंगे।
खंडपीठ ने कहा कि अनधिकृत संरचनाओं को खाली कराने और हटाने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले, संबंधित जिले के कलेक्टर को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी पहचान सहित नाम और उनमें रहने वाले व्यक्तियों की संख्या जैसे आवश्यक विवरण दर्ज और प्रोफाइल किए जाने चाहिए।
इसने कहा कि इन अभिलेखों को कलेक्टर द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि इस तरह की विध्वंस कार्रवाई से प्रभावित योग्य और पात्र व्यक्तियों को उपयुक्त आवास प्रदान करने की संभावना पर विचार किया जा सके।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि संबंधित स्थानीय प्राधिकरण के पास कोई पुनर्वास योजना है, तो प्रभावित व्यक्ति पात्र होने पर इसके तहत पुनर्वास के लिए आवेदन कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 28 जनवरी को तय की है।
रेलवे की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने कहा कि जहां तक रेलवे का सवाल है, उसके पास पुनर्वास की कोई नीति नहीं है।
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