नयी दिल्ली, 27 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों के संचालन के मुद्दे पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने कहा कि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी), जिसने पाखरो-मोरेघट्टी-कालागढ़-रामनगर वन मार्ग पर निजी बसों के संचालन के खिलाफ सिफारिश की है, को वहां रहने वाले लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए।
पीठ ने कहा, “आपको (सीईसी) बहुत संतुलित दृष्टिकोण रखना होगा। आप सिर्फ जानवरों के बारे में नहीं सोच सकते। आपको इंसानों के बारे में भी थोड़ा सोचना होगा।”
शीर्ष अदालत राष्ट्रीय उद्यान के उस निर्णय के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें बाघ अभयारण्य के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों को चलाने की अनुमति दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी, 2021 को राष्ट्रीय उद्यान द्वारा 23 दिसंबर, 2020 को जारी कार्यालय पत्र के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी, जिससे बसों को मुख्य क्षेत्र में चलाने की अनुमति मिल गई।
उत्तराखंड राज्य ने पहले न्यायालय को सूचित किया था कि सड़क ‘बफर जोन’ और मुख्य क्षेत्र दोनों से होकर गुजरती है।
इसमें कहा गया कि कुल 53 किलोमीटर लंबाई में से 45 किलोमीटर सड़क बफर जोन में आती है, जबकि शेष मुख्य क्षेत्र में है।
बफर जोन मुख्य क्षेत्र के आसपास का इलाका होता है जहां प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग, अनुसंधान, विकास, पर्यावरण शिक्षा और विनियमित पर्यटन जैसी कम प्रभाव वाली गतिविधियां की जाती हैं।
बुधवार को सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कहा कि सीईसी ने मामले में अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है।
उत्तराखंड की ओर से पेश वकील ने कहा कि वहां 1986 से 18 सीटों वाली बस चल रही है और यह स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए है।
न्याय मित्र ने कहा कि सड़क पर कोई आपत्ति नहीं है तथा केवल वाणिज्यिक बस सेवा का विरोध किया जा रहा है।
पीठ ने पूछा, “श्रीमान परमेश्वर, जरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाइए। आप मुख्य क्षेत्रों में जाने के लिए 24 सीटों वाली कैंटर बस रख सकते हैं, लेकिन वहां रहने वाले लोगों के लिए 18 सीटों वाली बस नहीं?”
उच्चतम न्यायालय ने सुझाव दिया कि यदि आपत्ति निजी संचालकों की बसों के संचालन से संबंधित है, तो वह उस मार्ग पर राज्य बस चलाने का निर्देश दे सकता है।
पीठ ने राज्य और केंद्र की ओर से उपस्थित वकीलों को सीईसी रिपोर्ट की प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश दिया तथा उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया, जिसके बाद अगली सुनवाई होगी।
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