देश की खबरें | पुलिस आयुक्त, एम्स सुनिश्चित करें कि पॉक्सो मामलों में बच्चों की पहचान गुप्त रखी जाए: अदालत

नयी दिल्ली, दो जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस आयुक्त और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सा अधीक्षक से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चों की पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं की जाए।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने पॉक्सो मामले की सुनवाई करते हुए एक बच्चे के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की जेल की सजा को भी कम कर दिया और कहा कि अपराध का केवल प्रयास किया गया था।

हालाँकि, न्यायाधीश ने कहा कि जांच अधिकारी पीड़ित बच्चे की पहचान की रक्षा करने में विफल रहा।

न्यायाधीश ने 23 दिसंबर 2024 को अपने आदेश में कहा, ‘‘जांच अधिकारी चिकित्सीय जांच सहित किसी भी तरीके से पीड़ित की पहचान की रक्षा करने में विफल रहे।’’

अधिकारी की विफलता पर कड़ा रुख अपनाते हुए अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि भविष्य में कानून का ऐसा कोई उल्लंघन न हो।

अदालत ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख किया तथा बच्चे की पहचान के सार्वजनिक प्रकटीकरण पर प्रतिबंध की ओर इशारा किया।

इसने कहा, ‘‘इस आदेश की एक प्रति पुलिस आयुक्त और चिकित्सा अधीक्षक, एम्स को भेजी जाए, जिसमें उचित दिशानिर्देश जारी करने के निर्देश दिए जाएं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे मामलों में पीड़ित की पहचान की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं और भविष्य में इस तरह का उल्लंघन न हो। अनुपालन रिपोर्ट अदालत के समक्ष रखी जाए।’’

यह मामला पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के एक मामले में व्यक्ति की सजा के खिलाफ अपील से संबंधित था। दोषी को 2021 में 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

उच्च न्यायालय ने उसे पॉक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत दोषी ठहराते हुए 5,000 रुपये जुर्माने के साथ जेल की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया।

इसमें डॉक्टर को दिए गए बच्चे के बयान और उसकी मां द्वारा पुलिस को दिए गए बयान पर विचार किया गया जिससे यह निष्कर्ष निकला कि यौन उत्पीड़न का केवल प्रयास किया गया था।

अदालत ने कहा, ‘‘अगर थोड़ा सा भी संदेह है तो इसका लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।’’

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