मैसुरु, 21 जून मैसुरु में आठवें ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ पर मुख्य समारोह आयोजित करने को यहां महाराजाओं से इसे मिले संरक्षण के उचित सम्मान के तौर पर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां ‘अम्बा विलास पैलेस’ परिसर में योग दिवस समारोह की अगुवाई की और योग में शहर के महत्वपूर्ण योगदान का जिक्र किया। उन्होंने मैसुरु को ‘‘आध्यात्म और योग की भूमि’’ बताया।
मोदी ने कहा, ‘‘मैं योग दिवस के अवसर पर कर्नाटक की सांस्कृतिक राजधानी और आध्यात्म एवं योग की भूमि मैसुरु को नमन करता हूं। मैसुरु जैसे आध्यात्मिक केंद्र योग की ऊर्जा को सदियों से पोषित कर रहे हैं और आज यह ऊर्जा वैश्विक स्वास्थ्य को दिशा दे रही है।’’
‘राजमाता’ प्रमोदा देवी वाडियार और मैसुरु के शाही वंशज यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार ने मैसुरु की योग विरासत को याद करते हुए कहा कि यह आयोजन उस विरासत की स्वीकृति पर मुहर लगाने के समान है।
उन्होंने कहा कि 1799 से 1868 तक शासन करने वाले महाराजा मुम्मदी कृष्णराजा वाडियार ने अपनी पुस्तक ‘श्रीतत्वनिधि’ में लगभग 108 ‘आसनों’ के बारे में लिखा था और उसके बाद तिरुमलाई कृष्णमाचार्य ने तत्कालीन महाराजा नलवाड़ी कृष्णराजा वाडियार के आग्रह पर योग प्रशिक्षण देना शुरू किया।
प्रमोदा देवी वाडियार ने भी योग के प्रसार में महाराजा मुम्मदी कृष्णराजा वाडियार और नलवाड़ी कृष्णराजा वाडियार के योगदान को याद किया।
उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न आसनों पर मुम्मदी कृष्णराजा वाडियार का काम और उनका लेखन हमारे साथ है।’’
तिरुमलाई कृष्णमाचार्य (1888-1989) वैदिक परंपरा और योग शिक्षण एवं अभ्यासों के भारत के सबसे सम्मानित जानकारों में से एक थे। उन्होंने मैसुरु के महाराजा नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार के संरक्षण में जगनमोहन पैलेस में एक योगशाला शुरू की थी।
कृष्णमाचार्य ‘विन्यास’ की अवधारणा पेश करने वाले संभवत: पहले योग गुरु थे। ‘विन्यास’ अर्थ है: सांस के साथ समन्वित मुद्राएं करना। उन्हें महाराजा ने व्याख्यान और योगाभ्यास प्रदर्शन के लिए विभिन्न स्थानों पर भेजा था।
कृष्णमाचार्य की शिक्षाओं को उनके प्रमुख छात्रों के.पट्टाभि जोइस, बी के एस अयंगर, इंद्रा देवी (आचार्य की पहली छात्रा) और उनके बेटे टी के वी देसिकाचर ने और लोकप्रिय बनाया।
अष्टांग योग शैली पट्टाभि जोइस ने विकसित की, अयंगर ‘अयंगर योग’ के कारण दुनिया भर में लोकप्रिय हुए। इंद्रा देवी को ‘पश्चिमी योग की जननी’ के रूप में जाना जाता है और टी के वी का ‘विनियोग’ पश्चिम में भी लोकप्रिय हो गया।
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