लंदन, 21 जनवरी: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के नेतृत्व वाले एक विद्वान मंडल (थिंक टैंक) के सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि सिर्फ 56 प्रतिशत ब्रिटिश भारतीय कोविड-19 का टीका लगवाएंगे और प्रजनन की क्षमता कम होने की आशंका के मद्देनजर महिलाओं के कम संख्या में टीका लगवाने की संभावना है. टीकाकरण पर ब्रिटेन के सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यक समूह ब्रिटिश भारतीय के विचारों को जानने के लिए यह सर्वेक्षण किया गया. दरअसल, इस आबादी समूह में कोविड-19 टीके को लेकर चिंता प्रकट किये जाने के बाद यह कदम उठाया गया. यह सर्वेक्षण 1928 इंस्टीट्यूट ने किया है.
‘टीके, महामारी और ब्रिटिश भारतीय’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है , ‘‘कोविड-19 से सबसे बुरी तरह से प्रभावित होने वाला समुदाय होने के बावजूद ब्रिटिश भारतीय टीका लगवाने के प्रति अनिच्छा प्रदर्शित कर रहे हैं. इसक मुख्य कारण यह है कि टीके के बारे में उन्हें पर्याप्त जानकारी नहीं मिल पाई है. ’’
सर्वेक्षण में कहा गया है, ‘‘ब्रिटिश भारतीय समुदाय में आशंका को दूर करने के लिए हमारे विविध समुदायों को ध्यान में रख कर तैयार किये गये एक स्पष्ट और समन्वित जन स्वास्थ्य अभियान की जरूरत है. ’’
रिपोर्ट में जुलाई से दिसंबर 2020 के बीच 2,320 से अधिक ब्रिटिश भारतीयों की प्रतिक्रियाएं शामिल की गई. इनमें से 56 प्रतिशत लोगों ने कोविड-19 का टीका लगवाने की इच्छा प्रकट की.
पुरूषों और महिलाओं, दोनों ने इस बात को लेकर चिंता प्रकट की है कि टीके का उत्पादन जल्दबाजी में किया जा रहा है और इसके दीर्घकालीन अज्ञात दुष्प्रभाव हो सकते हैं. महिलाओं का कहना है कि टीके का प्रजनन और गर्भावस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पर्याप्त रूप से परीक्षण नहीं किया गया है.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो एवं 1928 इंस्टीट्यूट की सह-संस्थापक डॉ निकिता वेद ने कहा, ‘‘कोविड-19 के कारण आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान बुखार आता है और शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है,जो शिशु में जन्म के समय से रहने वाली विकृति का कारण बनता है. टीके में इस प्रभाव को खत्म करने की क्षमता है, लेकिन टीके के प्रभाव का पर्याप्त परीक्षण नहीं किया गया है. ’’
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