जरुरी जानकारी | विदेशों में बाजार टूटने, रुपये में रिकॉर्ड गिरावट से तेल-तिलहनों के भाव लुढ़के

नयी दिल्ली, 13 जुलाई विदेशी बाजारों में कमजोरी के रुख के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बुधवार को सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, सीपीओ, बिनौला और पामोलीन तेल सहित अधिकांश तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट दर्ज हुई।

बाजार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में लगभग आठ प्रतिशत की जोरदार गिरावट आई जबकि शिकॉगो एक्सचेंज फिलहाल 3.5 प्रतिशत कमजोर है। विदेशों की इस गिरावट से अधिकांश तेल- तिलहनों के भाव धराशायी होते दिखे।

सूत्रों ने कहा कि विदेशों में तेल कीमतों की मंदी से आयातक और तेल उद्योग को काफी नुकसान हो चुका है। फिर भी देश के बाजारों में खाद्य तेलों का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) नीचे नहीं आ रहा है। कच्चे पामतेल का भाव पिछले डेढ़-दो महीने में घटकर आधा रह गया है। वैश्विक कीमतों में गिरावट का लाभ आम उपभोक्ताओं को सुनिश्चित करने की मंशा के साथ सरकार की खाद्य तेल निकायों, तेल कंपनियों से लगभग तीन बैठकें हो चुकी हैं। बैठक में एमआरपी में कमी करने का आश्वासन भी मिला है लेकिन खुदरा खरीदारों की शिकायतें मिल रही हैं कि अब भी एमआरपी ऊंचा बना हुआ है।

सूत्रों ने कहा कि चावल भूसी (राइस ब्रान) तेल सभी तेलों में सबसे सस्ता है और इसका उपयोग ज्यादातर ‘ब्लेंडिंग’ के लिए किया जाता है। बेहतरीन गुणवत्ता वाले चावल भूसी (राइस ब्रान) तेल का थोक बिक्री भाव अधिभार सहित 127 रुपये लीटर है लेकिन देश के कुछ प्रमुख ब्रांड ने इस खाद्य तेल का एमआरपी 205-225 रुपये लीटर रखा हुआ है जबकि इसका एमआरपी अधिकतम 150-155 रुपये लीटर होना चाहिये। सूत्रों ने कहा कि सरकार ने बैठकों के परिणाम देख लिए हैं अब उसे एमआरपी को लेकर सीधी कार्रवाई करने के बारे में विचार करना चाहिये।

सूत्रों ने कहा कि रुपये में नित प्रतिदिन की रिकॉर्ड गिरावट ने आयातकों के संकट को और बढ़ा दिया है।

सूत्रों ने कहा कि सितंबर-अक्टूबर में पंजाब, हरियाणा में धान की फसल आ जायेगी तो फिर आयातित चावल भूसी तेल को कहां खपाया जायेगा? इसके अलावा खाद्य तेलों के शुल्क-मुक्त आयात जारी रहने से अगले साल सरसों जैसे देशी तेल-तिलहन गैर-प्रतिस्पर्धी हो जायेंगे और किसानों को उनकी फसल का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने की गारंटी कौन देगा? यह रास्ता तो देश में तेल-तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देने के बजाय आयात पर पूरी तरह निर्भर होने की ओर ले जायेगा।

सूत्रों ने कहा कि जैतून का तेल (ऑलिव आयल) महंगा होता है और इसका खाने के लिए उपभोग भी उच्च आय वर्ग के लोग करते हैं। मध्यम वर्ग या सामान्य जन इस तेल का इस्तेमाल खाने के लिए शायद ही करते हैं। सूत्रों ने कहा कि ऐसे में इस तेल पर आयात शुल्क कम करने की तेल निकायों की मांग का कोई औचित्य नहीं है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने के भरपूर प्रयास करने होंगे तभी इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है।

बुधवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन - 7,295-7,345 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली - 6,735 - 6,860 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,750 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली सॉल्वेंट रिफाइंड तेल 2,640 - 2,830 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 14,650 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 2,315-2,395 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 2,355-2,460 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी - 17,000-18,500 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,700 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 12,950 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,750 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 11,000 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 13,950 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 12,800 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 11,600 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना - 6,250-6,300 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज 6,000- 6,050 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

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