नयी दिल्ली, 22 जुलाई विदेशी बाजारों में मजबूती के रुख के बीच घरेलू बाजारों में सोमवार को सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के थोक दाम सुधार के साथ बंद हुए।
शिकॉगो और मलेशिया एक्सचेंज में सुधार है।
बाजार सूत्रों ने कहा कि सहकारी संस्था नाफेड ने पहले के बचे सरसों की बिक्री के लिए जो 19 जुलाई को निविदा मंगाई थी, उसने कम दाम लगाये जाने की वजह से सारी निविदा निरस्त कर दी और अब आज फिर से निविदा मंगाई है। यह सरसों पिछले तीन वर्षो से बचा हुआ है। इस तरह की खरीद नुकसानदेह है क्योंकि भंडारण के लिए उपयोग होने वाली एक बोरी की कीमत लगभग 150 रुपये बैठती है जो सरकार मुफ्त देती है और लंबे समय तक गोदाम में रखे जाने की वजह भाड़ा बढ़ता है और रखे-रखे और सूखने की वजह से सरसों का वजन घट जाता है। इस नुकसान वाले भंडारण के बजाय अगर सरकार ऐसे सरसों को पेराई के बाद राशन की दुकानों से बिकवाये तो उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत का फायदा होगा और सरकार को भी भंडारण लागत की बचत होगी।
खाद्य तेलों के प्रमुख संगठन ‘सोपा’ ने आज सरकार से आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क लगाने की मांग की है और डी-आयल्ड केक (डीओसी) के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए डीओसी पर सब्सिडी दिये जाने की भी मांग की है।
सूत्रों ने कहा कि विदेशों में सूरजमुखी तेल के दाम टूटे हुए हैं जिसकी वजह से घरेलू मासिक लगभग 2.50 लाख टन की मांग के मुकाबले लगभग दोगुनी मात्रा में सूरजमुखी तेल का आयात हो रहा है। हालात यथावत रहे तो आगे आयात और बढ़ेगा। बिनौला तेल जो बहुत कम बचा रह गया है वह भी आयातित सूरजमुखी की वजह से खप नहीं रहा है, तो उसकी दो-ढाई महीने में जब नयी फसल आयेगी तो उसके बाद निकलने वाला तेल कैसे और कहां खपेगा? इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में वायदा कारोबार में कुछ नये जिंसों को शामिल करने का भी प्रस्ताव किया गया है। सूत्रों ने कहा कि इसके दायरे में तेल-तिलहन को नहीं लाना चाहिये क्योंकि इससे देश के तिलहन किसानों को भारी नुकसान होगा।
सूत्रों ने कहा कि अपनी जरूरत के लगभग 40 प्रतिशत तेल-तिलहन घरेलू स्तर पर पैदा कर जब देश, उसे खपा पाने की स्थिति में नहीं हैं तो पूरी आत्मनिर्भरता हासिल कर या उत्पादन बढ़ाने से किसानों को क्या फायदा होगा? इस विरोधाभास को दुरुस्त करना होगा और इसके लिए घरेलू तेल-तिलहनों का बाजार विकसित करने पर जोर देना होगा।
उन्होंने कहा कि एक से 20 जुलाई के बीच कांडला बंदरगाह पर खाद्य तेलों का आयात लगभग 35 प्रतिशत बढ़ा है।
तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 5,975-6,025 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,475-6,750 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,500 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,330-2,630 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 11,600 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,895-1,995 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,895-2,020 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,350 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,125 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,675 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,625 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,750 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,800 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 8,900 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 4,585-4,605 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 4,395-4,515 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,125 रुपये प्रति क्विंटल।
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