पणजी, 11 जनवरी पूर्व प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने बृहस्पतिवार को कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए "ऊर्ध्वाधर" आरक्षण का दावा करने का हकदार नहीं है।
हालाँकि, उन्होंने कहा कि संबंधित समुदाय के लोग महिलाओं और दिव्यांग व्यक्तियों की तर्ज पर "क्षैतिज" आरक्षण का दावा कर सकते हैं।
नवंबर 2022 में 49वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति ललित यहां इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईयूएलईआर) में 'सकारात्मक कार्रवाई और भारत के संविधान' विषय पर एक विशेष व्याख्यान के बाद प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान एक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
जब उनसे पूछा गया कि क्या एलजीबीटीक्यू समुदाय कभी संवैधानिक सकारात्मक कार्रवाई/आरक्षण के दायरे में आएगा, तो उन्होंने कहा,‘‘सैद्धांतिक रूप से हां, लेकिन अगर मैं जवाबी तर्क देता हूं, तो यह इस विचार के महत्व को कम करने के लिए नहीं है, बल्कि यह समझने के लिए है कि मेरा जन्म एससी, एसटी या ओबीसी समुदाय में हुआ है जिस पर मेरा कोई वश नहीं है जबकि यौन रुझान एक चुनाव है।''
उन्होंने कहा, "यह मुझ पर जन्म की दुर्घटना के रूप में थोपा नहीं गया है। इसलिए यह मेरे यौन अभिविन्यास के कारण नहीं है कि मैं किसी चीज से वंचित हूं। कोई व्यक्ति जो तीसरे लिंग के रूप में पैदा हुआ है, वह पैदाइश का मामला है और वहां सकारात्मक कार्रवाई है । लेकिन अधिकांश एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए यौन अभिविन्यास उनकी अपनी पसंद है।’’
उन्होंने कहा कि समुदाय के सदस्यों ने इसे एक चुनाव के रूप में स्वीकार किया है।
उन्होंने कहा, "इस प्रकार का आरक्षण ‘ऊर्ध्वाधर’ रूप से पृथक लोगों के लिए है। महिलाओं और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए क्षैतिज आरक्षण भी है तथा इसी तरह एलजीबीटीक्यू भी एक क्षैतिज आरक्षण श्रेणी हो सकती है।"
पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि क्षैतिज आरक्षण का मतलब कुल आरक्षण कोटा आकार में वृद्धि किए बिना व्यक्तिगत ऊर्ध्वाधर खंड से एक टुकड़ा निकालना है।
उन्होंने कहा, "जैसे कि कोई महिला खुली श्रेणी या एससी, एसटी या ओबीसी या ईडब्ल्यूएस में हो सकती है। क्षैतिज श्रेणी आरक्षण के कुल आकार को बढ़ाए बिना क्षैतिज रूप से चलती है। उसी तरह, शायद यह एलजीबीटीक्यू श्रेणी भी एक क्षैतिज आरक्षण श्रेणी हो सकती है, लेकिन यह संसद के विचार का विषय है। किसी विशेष समूह को एक श्रेणी मानने में कुछ भी गलत नहीं है।''
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