नयी दिल्ली, नौ अगस्त उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली आबकारी नीति मामलों की सुनवाई में देरी के लिए आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया को जिम्मेदार ठहराने वाले निचली अदालत के निष्कर्ष के समर्थन में कोई रिकॉर्ड नहीं है।
उच्चतम न्यायालय ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धनशोधन के मामलों में सिसोदिया की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि दोनों मामलों से संबंधित लगभग 69,000 पृष्ठों के दस्तावेज हैं।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा, ‘‘इसमें शामिल दस्तावेजों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी को उक्त दस्तावेजों की जांच के लिए उचित समय लेने का अधिकार नहीं है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का लाभ उठाने के लिए, अभियुक्त को दस्तावेजों की जांच के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।’’
पीठ ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज दोनों मामलों में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यद्यपि विभिन्न आरोपियों द्वारा विभिन्न आवेदन दायर किए गए हैं, सिसोदिया ने सीबीआई मामले में केवल 13 और ईडी मामले में 14 आवेदन दायर किए हैं।
पीठ ने कहा कि इन सभी आवेदनों को निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया था।
न्यायालय ने कहा कि त्वरित सुनवाई और स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण है तथा किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले लंबे समय तक कैद में रखने को ‘‘बिना सुनवाई के सजा’’ नहीं बनने दिया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सिसोदिया त्वरित न्याय के अपने अधिकार से वंचित हैं क्योंकि वह लगभग 17 महीने से जेल में हैं और सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है।
पीठ ने अपने 38 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘हम पाते हैं कि लगभग 17 महीने तक जेल में रखने और सुनवाई शुरू न होने के कारण अपीलकर्ता (सिसोदिया) को शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है।’’
पीठ ने कहा, “इस अदालत का मानना है कि शीघ्र सुनवाई का अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण अधिकार हैं। इन अधिकारों से इनकार करते समय, निचली अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालय को भी इस बात को उचित महत्व देना चाहिए था।”
पीठ ने पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि समय के साथ न्यायालय ने पाया कि निचली अदालतें और उच्च न्यायालय कानून के एक बहुत ही स्थापित सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है।
पीठ ने कहा, ‘‘अब, अपीलकर्ता को फिर से निचली अदालत और इसके बाद उच्च न्यायालय भेजना और फिर इस अदालत में आने के लिए बाध्य करना हमारे विचार से, उसे ‘सांप और सीढ़ी’ का खेल खेलने पर मजबूर करने जैसा होगा।’’
पीठ ने कहा, ‘‘निचली अदालत और उच्च न्यायालय पहले ही अपना निर्णय दे चुके हैं और हमारे विचार में अपीलकर्ता को दोबारा निचली अदालत और उच्च न्यायालय में भेजना महज औपचारिकता होगी।’’
पीठ ने सिसोदिया की जमानत याचिका पर उच्चतम न्यायालय द्वारा चार जून को पारित आदेश का हवाला दिया।
उच्चतम न्यायालय ने चार जून को सिसोदिया की याचिका का निपटारा कर दिया था और कहा था कि ईडी और सीबीआई द्वारा क्रमशः अंतिम अभियोजन शिकायत और आरोप पत्र दायर करने के बाद वह अपनी जमानत याचिका फिर से दायर कर सकते हैं।
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को अब रद्द हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं को लेकर 26 फरवरी, 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था।
ईडी ने उन्हें नौ मार्च, 2023 को सीबीआई की प्राथमिकी से उपजे धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया था। उन्होंने 28 फरवरी, 2023 को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
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