खेल की खबरें | आईसीसी और बीसीसीआई अधिकारियों के साथ चैम्पियंस ट्रॉफी विवाद सुलझाने को कोई बैठक नहीं : पीसीबी

कराची, 23 नवंबर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने शनिवार को उन खबरों को खारिज कर दिया कि उसके अधिकारी चैंपियंस ट्रॉफी को लेकर अनिश्चितता को दूर करने के लिए 26 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) और भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के अपने समकक्षों के साथ एक वर्चुअल बैठक करेंगे।

बीसीसीआई द्वारा टूर्नामेंट के लिए भारतीय टीम को पाकिस्तान भेजने में असमर्थता जताने के बाद टूर्नामेंट के कार्यक्रम की घोषणा में देर हो रही है।

पीसीबी के एक विश्वसनीय सूत्र ने पीटीआई को बताया, ‘‘हमारे, बीसीसीआई और आईसीसी के बीच किसी बैठक के बारे में आईसीसी से हमें कोई जानकारी नहीं मिली है।’’

उन्होंने यह भी कहा कि पीसीबी को आईसीसी से उस ईमेल पर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है जिसमें उसने भारत की टीम को पड़ोसी देश भेजने की अनिच्छा के कारण पूछने के लिए आईसीसी को भेजा है।

हालांकि आईसीसी के एक सूत्र ने स्पष्ट किया कि इस जटिल मुद्दे का समाधान खोजने के लिए मंगलवार को एक आंतरिक बैठक हो सकती है।

उन्होंने खुलासा किया, ‘‘चैंपियंस ट्रॉफी के कार्यक्रम के मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझाने के लिए कार्यकारी बोर्ड के सदस्यों की यह एक वर्चुअल बैठक है। ’’

उन्होंने कहा कि यह बैठक इसलिए बुलाई गई है क्योंकि कार्यक्रम के प्रसारणकर्ता आईसीसी पर कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए बहुत दबाव डाल रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘संभावना है कि इस बात पर मतदान हो सकता है कि क्या किया जाए और क्या कार्यक्रम को पाकिस्तान में आयोजित किया जाना चाहिए, इसे स्थानांतरित किया जाना चाहिए या बीसीसीआई द्वारा सुझाए गए ‘हाइब्रिड मॉडल’ को अपनाया जाना चाहिए जिसमें भारत अपने मैच संयुक्त अरब अमीरात में खेलेगा। ’’

अधिकारी ने माना कि इस बार पीसीबी ने भी कड़ा रुख अपनाया है और वह चैंपियंस ट्रॉफी को पाकिस्तान में आयोजित करने के अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं है क्योंकि उन्हें किसी भी टीम की मेजबानी करने में कोई समस्या नहीं है।

सूत्र ने कहा, ‘‘पीसीबी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भले ही ‘हाइब्रिड मॉडल’ अपनाया जाए लेकिन वह दुबई में भारत के खिलाफ अपना ग्रुप मैच नहीं खेलेगा। ’’

उन्होंने कहा कि कार्यकारी बोर्ड की ओर से पाकिस्तान और भारत को अलग-अलग पूल में रखने का सुझाव दिया गया है लेकिन प्रसारणकर्ता राजस्व में कमी के कारण इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

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