प्रयागराज, 24 मई मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में शुक्रवार को हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई कि भगवान सतत नाबालिग हैं, इसलिए इस मामले में दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) में नाबालिग द्वारा या नाबालिग के खिलाफ वाद के संबंध में दिए गए प्रावधान लागू होंगे।
हिंदू पक्ष की ओर से आगे कहा गया कि मौजूदा वाद, भगवान केशव देव की ओर से उनके मित्र द्वारा दायर किए गए हैं और इन वादों को दायर करने में कोई अवैधता नहीं है। वाद की विचारणीयता के संबंध में पक्षों की ओर से साक्ष्य के अवलोकन के बाद निर्णय किया जा सकता है।
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत में हो रही है। अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार को करने का निर्देश दिया।
इससे पूर्व, हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि पूजा स्थल कानून, 1991 गैर विवादित ढांचे के मामले में ही लागू होता है, ना कि विवादित ढांचे के मामले में। मौजूदा मामले में ढांचे का चरित्र अभी तय होना बाकी है और यह केवल साक्ष्यों से तय हो सकता है।
हिंदू पक्ष के वकील ने कहा, “मंदिर पर एक अवैध निर्माण, वाद में बाधक नहीं बन सकता। वाद की विचारणीयता को लेकर दाखिल अर्जी पर निर्णय, पक्षों से साक्ष्य देखने के बाद ही किया जा सकता है।”
मुस्लिम पक्ष की वकील तसलीमा अजीज अहमदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कहा था कि उनके पक्ष ने 12 अक्टूबर, 1968 को एक समझौता किया था, जिसकी पुष्टि 1974 में निर्णित एक दीवानी वाद में की गई। एक समझौते को चुनौती देने की समय सीमा तीन वर्ष है, लेकिन वाद 2020 में दायर किया गया। इस तरह से मौजूदा वाद समय सीमा से बाधित है।
अहमदी ने आगे दलील दी थी कि यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। वाद में की गई प्रार्थना दर्शाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)