देश की खबरें | दिल्ली में सड़कों पर वाहनों से नैनोकण का उत्सर्जन स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है : अध्ययन

नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर दिल्ली की हवा में, विशेष रूप से सड़कों के किनारे के वातावरण में नैनोकण का खतरनाक स्तर पाया गया है, जिसका सीधा संबंध वाहनों से निकलने वाले धुएं से है और इससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ रही हैं। एक अध्ययन से यह जानकारी मिली।

नैनोकण, बेहद सूक्ष्म कण होते हैं, जिनका व्यास अक्सर 10 से 1000 नैनोमीटर (एनएम) के बीच होता है।

ये कण पीएम 2.5 (हवा में मौजूद 2.5 माइक्रो मीटर से कम व्यास के कण) या पीएम 10 की तुलना में बहुत छोटे आकार के होने के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए अधिक खतरनाक हैं। मनुष्य के बाल से 600 गुना बारीक होने के कारण ये नैनोकण हमारे फेफड़ों, रक्त और यहां तक कि मस्तिष्क में भी प्रवेश कर सकते हैं।

पत्रिका ‘अर्बन क्लाइमेट’ में प्रकाशित इस अध्ययन को उत्तर पश्चिमी दिल्ली में बवाना रोड पर किया गया था, जो दिल्ली को हरियाणा के रोहतक से जोड़ता है।

शोधार्थियों ने कहा कि अध्ययन का स्थान शैक्षणिक संस्थानों, घरों और वाणिज्यिक क्षेत्रों से घिरा हुआ है, जहां प्रदूषण का प्रमुख स्रोत वाहन है।

उन्होंने कहा कि इसके अन्य स्रोतों में बायोमास (लकड़ी,पराली आदि) जलाना, सर्दियों में घरों को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन और आतिशबाजी शामिल हैं।

बवाना रोड होकर हर घंटे लगभग 1,300 वाहन गुजरते हैं और हर दिन औसतन 40,000 वाहन गुजरते हैं।

दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद के शोधकर्ताओं की संयुक्त टीम ने अध्ययन को दो अवधियों में विभाजित किया : पहली अवधि एक अप्रैल, 2021 से 30 जून, 2021 तक, और दूसरी अवधि तीन अक्टूबर, 2021 से 30 नवंबर 2021 तक की थी।

अध्ययन में 10 से 1000 एनएम (नैनो मीटर) तक के सूक्ष्म प्रदूषक पाये गए, साथ ही सड़क पर वाहनों की संख्या और मौसम की स्थिति को भी ध्यान में रखा गया।

दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में पर्यावरण अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर राजीव कुमार मिश्रा ने कहा कि अध्ययन में पाया गया है कि शहर में सड़क किनारे वातावरण में सूक्ष्म कणों की सांद्रता मानव गतिविधियों, विशेष रूप से वाहन द्वारा होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि या कमी के साथ बदलती रहती है।

अध्ययन के अनुसार, 10 से 1000 एनएम आकार के नैनोकण का सबसे अधिक असर सड़क किनारे के स्थानों पर पाया गया।

अध्ययन के मुताबिक, जब हवा की गति तेज होती है, तो ये कण सड़क के नजदीकी क्षेत्रों में फैल जाते हैं, जिससे आस-पास रह रहे लोगों को जोखिम बढ़ जाता है।

मिश्रा ने कहा, ‘‘दिल्ली जैसे शहर में सड़कों से लगे आवासीय क्षेत्र नैनोकण से अधिक प्रभावित होते हैं। सड़कों के किनारे काम करने वाले लोगों, जैसे कि पुलिसकर्मी, सड़क किनारे वस्तुएं बेचने वाले, वाहन चालक और आसपास रहने वाले लोगों के लिए जोखिम अधिक होता है।’’

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