मुंबई, आठ मई महाराष्ट्र के मालेगांव में सितंबर 2008 में हुए बम धमाका मामले के आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने अधीनस्थ अदालत में दाखिल किए गए अपने अंतिम बयान में महाराष्ट्र आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे सहित वरिष्ठ अधिकारियों पर जांच के दौरान यातना देने का आरोप लगाया।
पुरोहित ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की विशेष अदालत में दाखिल किये गए 23 पन्नों के बयान में दावा किया कि करकरे, एटीएस के तत्कालीन संयुक्त आयुक्त परमबीर सिंह और अन्य ने उन्हें यातना दी और अपराध में संलिप्तता स्वीकार करने और वरिष्ठ दक्षिणपंथी नेताओं का नाम लेने के लिए दबाव बनाया।
विशेष अदालत में मामले की सुनवाई अंतिम दौर में है और अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-313 के तहत आरोपी के अंतिम बयान दर्ज किए जा रहे हैं।
पुरोहित ने मंगलवार को अपना बयान वकील के जरिये अदालत में जमा कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन सरकार के राजनीतिक विमर्श के अनुकूल एटीएस ने फर्जी मामला बनाया।
धमाके के समय केंद्र में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार थी जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की गठबंधन सरकार थी।
पुरोहित ने बयान में कहा कि एटीएस ने अक्टूबर 2008 में उन्हें हिरासत में लिया था और खंडाला ले गई थी जहां करकरे, परमबीर सिंह और अन्य एटीएएस अधिकारियों ने उनसे पूछताछ की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि करकरे और सिंह ने उनसे धमाके की साजिश में संलिप्त होने का गुनाह स्वीकार करने का दबाव बनाया और शारीरिक यातना दी।
मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल से बांध कर रखे गए बम में हुए धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 अन्य घायल हुए थे।
इस मामले की जांच शुरुआत में एटीएस ने की और 2011 में जांच की जिम्मेदारी एनआईए को सौंप दी गई।
करकरे उन पुलिस अधिकारियों में शामिल थे जो 26 नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले में शहीद हो गए।
पुरोहित और भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर सहित छह अन्य इस मामले में भारतीय दंड संहिता, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, भारतीय शस्त्र अधिनियम और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमे का सामना कर रहे हैं।
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