देश की खबरें | उचित शिक्षा के लिहाज से बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं हैं मदरसे: एनसीपीसीआर ने न्यायालय में कहा

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नयी दिल्ली, 12 सितंबर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि मदरसे बच्चों के लिए ‘उचित शिक्षा’ प्राप्त करने के लिहाज से ‘अनुपयुक्त’ हैं और वहां दी जाने वाली शिक्षा ‘व्यापक नहीं’ है तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के प्रावधानों के विरुद्ध है।

आयोग ने शीर्ष अदालत से कहा कि जो बच्चे औपचारिक स्कूल शिक्षा प्रणाली में नहीं हैं, वे प्राथमिक शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हैं, जिसमें मध्याह्न भोजन, स्कूल की वेशभूषा आदि जैसे अधिकार शामिल हैं।

एनसीपीसीआर ने कहा कि मदरसों के पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी की कुछ ही पुस्तकों से पढ़ाना शिक्षा प्रदान करने के नाम पर ‘‘मात्र दिखावा’’ है तथा यह सुनिश्चित नहीं करता है कि बच्चों को औपचारिक तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है।

आयोग ने कहा, ‘‘मदरसा न केवल ‘उचित’ शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त स्थान है, बल्कि यहां आरटीई अधिनियम की धारा 19, 21, 22, 23, 24, 25 तथा 29 के तहत प्रदत्त अधिकारों का भी अभाव है।’’

एनसीपीसीआर ने शीर्ष अदालत में दायर अपनी लिखित दलील में कहा, ‘‘इसके अलावा, मदरसे न केवल शिक्षा के लिए असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल पेश करते हैं, बल्कि उनके काम करने का तरीका भी मनमाना है, जिसमें पूरी तरह से मानकीकृत पाठ्यक्रम और कार्यप्रणाली का अभाव है।’’

आयोग ने कहा कि आरटीई अधिनियम, 2009 के प्रावधानों का अभाव होने के कारण, मदरसे 2009 के अधिनियम की धारा 21 के अनुरूप अधिकारों से वंचित हैं।

उसने कहा, ‘‘मदरसे मनमाने तरीके से काम करते हैं और संवैधानिक आदेश, आरटीई अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का पूरी तरह उल्लंघन करते हैं। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ऐसे संस्थान में शिक्षा प्राप्त करने वाला बच्चा स्कूल में प्रदान किए जाने वाले स्कूली पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित रहेगा।’’

आयोग के अनुसार, ‘‘एक स्कूल को आरटीई अधिनियम, 2009 की धारा 2 (एन) के तहत परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने वाला कोई भी मान्यता प्राप्त स्कूल। इस परि के दायरे से बाहर रहने वाले मदरसे को बच्चों या उनके परिवारों को मदरसा शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर करने का कोई अधिकार नहीं है।’’

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