Mosquitoes Outbreak: प्रकाश प्रदूषण के कारण मच्छरों के काटने की अवधि में वृद्धि संभव: शोध

सर्दियों के मौसम में मच्छर निष्क्रिय हो जाते हैं और लोगों को मच्छरों के प्रकोप से राहत मिलती है लेकिन अब एक नए शोध से पता चला है कि शहरों में तेज रौशनी के कारण होने वाले प्रकाश प्रदूषण के चलते मच्छरों के लिए निष्क्रियता की यह अवधि घट सकती है . परिणामस्वरूप लोगों और जानवरों को अधिक लंबे समय तक मच्छरों के संकट का सामना करना पड़ सकता है.

Mosquito| Representative Image : Pixabay

नयी दिल्ली, 11 अप्रैल : सर्दियों के मौसम में मच्छर निष्क्रिय हो जाते हैं और लोगों को मच्छरों के प्रकोप से राहत मिलती है लेकिन अब एक नए शोध से पता चला है कि शहरों में तेज रौशनी के कारण होने वाले प्रकाश प्रदूषण के चलते मच्छरों के लिए निष्क्रियता की यह अवधि घट सकती है . परिणामस्वरूप लोगों और जानवरों को अधिक लंबे समय तक मच्छरों के संकट का सामना करना पड़ सकता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि यदि रोग फैलाने वाले कीटों को अधिक खुराक लेने से रोक दिया जाए तो वे सर्दियों में जीवित नहीं रह सकते. हालांकि, मच्छरों की निष्क्रियता में देरी होने का मतलब है कि वे अधिक समय तक लोगों को काट सकते हैं. अमेरिका की ‘ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी’ में सहायक प्रोफेसर और शोध की वरिष्ठ लेखिका मेगन म्यूती ने कहा, ‘‘यदि मच्छरों की निष्क्रियता में देरी होती है और वे वर्ष में लंबे समय तक सक्रिय रहते हैं, तो ऐसे समय में मच्छरों के वेस्ट नाइल वायरस से संक्रमित होने की संभावना सबसे अधिक होती है. इसके चलते लोगों के इसकी चपेट में आने का सबसे अधिक खतरा हो सकता है.’’

हाल में पत्रिका ‘इन्सेक्ट्स’ में प्रकाशित अध्ययन में यह पहली बार सामने आया है कि रात में कृत्रिम प्रकाश मच्छरों के व्यवहार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, जिसमें ऐसे प्रभाव भी शामिल हैं, जिनका अनुमान लगाना सरल नहीं है. म्यूती ने कहा ‘‘हम पाते हैं कि रात में एक ही शहरी प्रकाश विभिन्न मौसमी संदर्भों के तहत बहुत अलग प्रभाव डाल सकता है.’’ उन्होंने अध्ययन के पहले लेखक मैथ्यू वॉकॉफ और लिडिया फी के साथ इस विषय पर अध्ययन किया. उत्तरी इलाकों में घरों में पायी जाने वाली मादा मच्छर सर्दियों के मौसम में निष्क्रिय नहीं रहती है बल्कि वह गुफाओं, पुलियाओं के नीचे या शेड आदि के नीचे जा छुपते हैं. शोधकर्ताओं ने बताया कि सर्दियों के आगमन से पहले, मच्छर पौधों के अमृत जैसे मीठे स्रोतों को वसा में बदल देते हैं. जैसे-जैसे दिन बड़े होते जाते हैं, मादाएं अंडे देने के लिए रक्त भोजन की तलाश शुरू कर देती हैं. ये कुछ संक्रमित पक्षियों को खाने से वेस्ट नाइल विषाणु से संक्रमित हो जाती हैं, और बाद में जब वे लोगों, घोड़ों और अन्य स्तनधारियों को काटती हैं तो विषाणु छोड़ती हैं. यह भी पढ़ें : COVID-19: कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सुप्रीम कोर्ट में मास्क हुआ अनिवार्य, बढ़ाई गई सख्ती

रात के समय कृत्रिम रौशनी लगाने से पाया गया कि पोषक तत्वों को संग्रहित करने की मच्छरों की गतिविधियां प्रभावित हुईं जो सर्दियों के तापमान में शरीर को गरम रखने के लिए जरूरी थे. प्रकाश प्रदूषण के संपर्क में आने से पानी में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो गई जो सर्दियों के दौरान एक आवश्यक खाद्य स्रोत हैं . इसे मच्छरों ने लंबे और छोटे दिन दोनों स्थितियों में जमा किया था. शोधकर्ताओं ने पाया कि रात में कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में आने से ग्लाइकोजन के संचय के पैटर्न उलट गए . सामान्य परिस्थितियों में, गैर-निष्क्रिय मच्छरों के शरीर में बहुत अधिक ग्लाइकोजन होता है, लेकिन सक्रिय मच्छरों में नहीं . प्रकाश प्रदूषण के तहत मच्छरों ने दिन की लंबी अवधि में अधिक ग्लाइकोजन जमा नहीं किया जबकि दूसरे मच्छरों ने ग्लाइकोजन संचय में वृद्धि दिखाई. ऐसे में प्रकाश प्रदूषण के तहत रहने वाले मच्छर लंबे समय तक भोजन की तलाश में रहे और लोगों को ज्यादा समय काटा. वॉकॉफ ने कहा, ‘‘यह अल्पावधि में स्तनधारियों के लिए बुरा हो सकता है क्योंकि मच्छर संभावित रूप से हमें बाद के मौसम में काट रहे हैं, लेकिन यह लंबी अवधि में मच्छरों के लिए भी बुरा हो सकता है क्योंकि वे सर्दियों में जीवित रहने के लिए आवश्यक तैयारी गतिविधियों में पूरी तरह से विफल हो सकते हैं. और इससे उनकी जीवित रहने की दर कम हो सकती है.’’

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