नयी दिल्ली, 23 मई केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी कि टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामले में निचली अदालत के उस फैसले में घोर वैधानिक विसंगतियां हैं, जिसमें पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और अन्य को बरी कर दिया गया था।
सीबीआई ने दलील दी कि विशेष अदालत के समक्ष रखे गए सबूतों की अवहेलना की गई। सीबीआई आरोपी व्यक्तियों और कंपनियों को बरी किये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी अपील पर दलीलें दे रही थी।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद मामले को आगे की सुनवाई के लिए 29 मई को सूचीबद्ध किया।
सीबीआई की ओर से पेश वकील नीरज जैन ने दलील दी, ‘‘मैं प्रदर्शित करूंगा कि (निचली अदालत के) फैसले में भयावह वैधानिक विसंगतियां हैं। सीबीआई की ओर से पेश किए गए सबूतों की अवहेलना की गई। सबूतों की समीक्षा पूरी तरह से गलत थी। मैं साबित करुंगा कि फैसला विकृत था और इसमें खामियां थीं।’’
सीबीआई के वकील ने सोमवार को कहा था कि निचली अदालत का फैसला 'गलत निष्कर्ष' पर आधारित है और 'कानून के लिहाज से यह अस्वीकार्य' है।
विशेष अदालत ने सीबीआई द्वारा दर्ज टूजी मामले में राजा और एम. कनिमोझी के अलावा पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, राजा के पूर्व निजी सचिव आरके चंदोलिया, यूनिटेक लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संजय चंद्रा और रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के तीन शीर्ष अधिकारियों- गौतम दोषी, सुरेंद्र पिपारा और हरि नायर- को बरी कर दिया था।
स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर शाहिद बलवा और विनोद गोयनका तथा कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों- आसिफ बलवा और राजीव अग्रवाल को भी मामले में बरी कर दिया गया था।
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