मकान मालिक को सम्पत्ति के लाभकारी उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता: अदालत

दिल्ली उच्च न्यायालय ने किराये पर लिये गए एक परिसर को खाली करने का आदेश बरकरार रखते हुए बुधवार को कहा कि मकान मालिकों को उनकी संपत्ति के लाभकारी उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता और उन्हें यह तय करने का अधिकार है कि वे अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करें।

Court | Photo Credits: Twitter

नयी दिल्ली, 29 नवंबर: दिल्ली उच्च न्यायालय ने किराये पर लिये गए एक परिसर को खाली करने का आदेश बरकरार रखते हुए बुधवार को कहा कि मकान मालिकों को उनकी संपत्ति के लाभकारी उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता और उन्हें यह तय करने का अधिकार है कि वे अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करें. उच्च न्यायालय ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि एक किरायेदार मकान मालिक को यह नहीं बता सकता कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाना है.

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा, ‘‘मकान मालिक को उनकी संपत्ति का लाभकारी उपयोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता. इसके अलावा, अदालत मकान मालिक को यह निर्देश नहीं दे सकती कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाना चाहिए. किराये पर दिये गए परिसर को खाली कराकर उसे अपनी आवश्यकता के अनुसार उपयोग करना, यह मकान मालिकों के स्वविवेक पर निर्भर करता है.’’

उच्च न्यायालय ने यह फैसला यहां श्यामा प्रसाद मुखर्जी मार्ग पर एक दुकान खाली करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए एक किरायेदार द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए सुनाया.

मकान मालिक ने कहा कि वह और उसका बेटा संपत्ति के संयुक्त मालिक हैं, जहां कई दुकानें किराये पर दी गई हैं और वह पहली मंजिल और उसके ऊपर एक होटल चला रहा है। मकान मालिक ने कहा कि उसके बेटे ने विदेश में अपनी शिक्षा पूरी की है और एक स्वतंत्र व्यवसाय चलाना चाहता है और उसने एक रेस्तरां शुरू करने का फैसला किया है, जिसके लिए उसे किराये पर दिया गया हिस्सा वापस चाहिए. किरायेदार ने अपनी याचिका में कहा कि मकान मालिकों ने अपनी याचिका में अपने कब्जे वाले सटीक क्षेत्र और 14 किरायेदारों द्वारा इस्तेमाल की जा रही जगह का विवरण नहीं दिया.

किरायेदार ने दावा किया कि बेदखली की याचिका कुछ और नहीं बल्कि बाद की एक सोच है, क्योंकि क्षेत्र में संपत्ति की कीमतें और किराया काफी बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि याचिका उनसे अधिक किराया मांगने या किराये के परिसर को अधिक कीमत पर बेचने के लिए दायर की गई. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे यह पता चले कि मकान मालिकों की जरूरत दुर्भावनापूर्ण या काल्पनिक है. इसने पुनरीक्षण याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसमें कोई दम नहीं है.

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