बाढ़ आने से कुछ ईकोसिस्टम को मदद मिलती है. वहीं, दूसरी तरफ इसकी वजह से बड़े पैमाने पर तबाही भी होती है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि बाढ़ आना पर्यावरण के लिए अच्छा है या बुरा?बाढ़ के दौरान नदियों का पानी खतरे के निशान से काफी ज्यादा ऊपर बहने लगता है. हर तरफ पानी ही पानी नजर आता है. घरों का निचला हिस्सा पानी में डूब जाता है. लोगों के पास न तो सिर छिपाने की जगह बचती है, न कहीं जाने का रास्ता बचता है. पानी की तेज धार में मवेशी तक बह जाते हैं. लोगों की पूरी जिंदगी की जमा-पूंजी पानी में बह जाती है. क्या ऐसे में कोई सोच सकता है कि बाढ़ आने के कुछ फायदे भी हैं?
1980 से 2022 के बीच यूरोपीय संघ में दर्ज की गई सभी जलवायु संबंधी चरम घटनाओं में बाढ़ आर्थिक नुकसान का सबसे बड़ा कारण रही है. इसके बावजूद, प्रकृति पर हमेशा इसका नकारात्मक असर नहीं होता है. बाढ़ आने के कुछ फायदे भी हैं.
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर में ग्लोबल वॉटर प्रोग्राम के निदेशक जेम्स डाल्टन का कहना है कि मौसमी बाढ़ कई ईकोसिस्टम्स के लिए महत्वपूर्ण हैं. ये मिट्टी के पोषक तत्वों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं. वह बताते हैं, "नदी प्रणालियां पोषक तत्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में मदद करती हैं, जिससे पारिस्थितिक तंत्र को समृद्ध किया जाता है. ये पोषक तत्व पानी के साथ नदी के मुहाने और डेल्टा तक पहुंचते हैं, जो जैविक रूप से दुनिया के सबसे उत्पादक हिस्से होते हैं.”
डाल्टन बताते हैं, "हमें बाढ़ की जरूरत है. बाढ़ मिट्टी के कणों, पोषक तत्वों और कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों को बहा ले जाती है, जो पर्यावरण के संतुलन के लिए बेहद जरूरी है. बाढ़ नदियों की तलछटी को साफ करती है, पोषक तत्वों को फैलाती है और कई महत्वपूर्ण प्रजातियों को निचली भूमि तक पहुंचाती है, जो पारिस्थितिक तंत्र के लिए आवश्यक है.”
बाढ़ का पानी अपने पीछे तलछट और पोषक तत्व छोड़कर चला जाता है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है और पौधे ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं. यही वजह है कि कई शहर और कस्बे नदियों के आसपास विकसित हुए हैं. बाढ़ का पानी जमीन को उर्वर बनाता है.
इसके अलावा, बाढ़ का पानी भूजल बढ़ाने में भी योगदान देता है. कुछ इलाकों में यह प्रक्रिया स्वाभाविक तौर पर होती रहती है. वहीं कैलिफोर्निया जैसे इलाकों में गर्मी के दिनों में पानी की समस्या से निपटने के लिए बाढ़ के पानी को संग्रहित करने की योजना बनाई जा रही है, ताकि भूजल भंडार को भरा जा सके.
बाढ़ से वन्यजीव को खतरा
हालांकि, वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि होने की वजह से दुनिया के कुछ हिस्सों में अप्रत्याशित बारिश हो रही है और औचक बाढ़ आ रही है. वहां यह बाढ़ विनाशकारी साबित हो रही है. डाल्टन ने कहा, "हम देख रहे हैं कि बारिश के पैटर्न में बदलाव के कारण बाढ़ अधिक विनाशकारी साबित हो रही है और लंबे समय तक बाढ़ की स्थिति बनी रहती है. जैव विविधता पर भी इसका काफी ज्यादा असर पड़ रहा है.”
वन्यजीवों पर बाढ़ का असर साफ तौर पर देखने को मिल रहा है. कुछ वन्यजीव तेजी से बढ़ते पानी से खुद को नहीं बचा पाते. उदाहरण के लिए, 2012 में जब पूर्वोत्तर भारत में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भीषण बाढ़ की चपेट में आया, तो लुप्तप्राय एक सींग वाले गैंडे सहित सैकड़ों जानवर मारे गए.
बाढ़ के दौरान कुछ जानवर प्रभावित इलाके से भागने में सफल हो जाते हैं, लेकिन उनका आवास और प्रजनन स्थल नष्ट हो जाता है. डाल्टन कहते हैं, "विनाशकारी बाढ़ नदी के किनारों और बाढ़ के मैदानों को नष्ट कर देती है. इससे तलछट और मिट्टी का कटाव इतना ज्यादा हो जाता है कि प्रवासी प्रजातियां प्रभावित हो सकती हैं क्योंकि वे वहां नहीं पहुंच पातीं, जहां उन्हें अंडे देने या प्रजनन के लिए तय समय पर होना चाहिए. इससे कई प्रजातियों का प्रजनन चक्र प्रभावित होता है.”
इसके अलावा, कृषि में इस्तेमाल किए गए कीटनाशकों, औद्योगिक रसायनों या नालों का पानी भी बाढ़ के पानी में मिल जाता है. इससे पौधों पर असर हो सकता है. अगर जानवर इन दूषित पौधों को खाते हैं, तो ये विषैले पदार्थ उनके शरीर तक पहुंच जाते हैं. बाद में जानवरों के जरिए हमारे भोजन में ये विषैले पदार्थ पहुंच सकते हैं.
बाढ़ से मिट्टी को भी होता है नुकसान
कुछ जगहों पर बाढ़ से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ जाती है, तो कहीं मिट्टी को नुकसान भी होता है. विनाशकारी बाढ़ की वजह से मिट्टी का 5 से 10 सेंटीमीटर तक का ऊपरी हिस्सा बह जाता है. जबकि, इस हिस्से में ही पोषक तत्व होते हैं. बाढ़ के पानी के कटाव के बाद इस मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जर्मनी में सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के सलाहकार मिशेल बर्गर ने कहा, "कल्पना कीजिए कि आपके इलाके में बाढ़ आई और मिट्टी को बहा ले गई. अब वहां आपको मिट्टी तो दिखेगी, लेकिन उसकी सबसे मूल्यवान परत हट गई. मनुष्य इस परत का दोबारा निर्माण नहीं कर सकते हैं और इसी परत की वजह से फसलों का उत्पादन होता है.”
मिट्टी जैव-विविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है. जर्मनी की ग्रीन पार्टी से जुड़े हाइनरिष बोएल फाउंडेशन की ओर से प्रकाशित नई रिपोर्ट के मुताबिक, स्वस्थ पृथ्वी जंगलों की तुलना में ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड जमा कर सकती है.
मिट्टी के कटाव की वजह से प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं और भूमि का परिदृश्य बदल जाता है. साथ ही, इससे पृथ्वी के पानी सोखने की क्षमता भी कम हो जाती है जिससे समस्या और बढ़ जाती है.
हाइनरिष बोएल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्मे शॉल्त्स ने मीडिया को दिए बयान में कहा, "जलवायु संकट का सामना करने के लिए हमें स्वस्थ मिट्टी की जरूरत है. मिट्टी स्वस्थ होने पर वह प्रति हेक्टेयर 3,750 टन पानी जमा कर सकती है और जरूरत के वक्त इस पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है.”
ईकोसिस्टम को बाढ़ से बचाने का तरीका
डाल्टन का कहना है कि बाढ़ के प्रभावों को सीमित करने के कई तरीके हैं. बाढ़ की स्थिति विनाशकारी होने की कई वजहें हैं क्योंकि हमने बाढ़ के पानी के रास्ते या बाढ़ के मैदानों में कई बुनियादी ढांचे बना दिए हैं.
दुनिया भर के शहरों में किफायती आवास की कमी के कारण अधिक से अधिक डेवलपर्स को बाढ़ के मैदानों पर निर्माण की अनुमति मिल रही है. इसका मतलब है कि घर और कारोबार से जुड़े बुनियादी ढांचे संभावित तौर पर खतरनाक जगहों पर बन रहे हैं.
डाल्टन कहते हैं, "नदियों को प्राकृतिक तौर पर बहने देना चाहिए, उनके घुमावदार रास्ते को फिर से व्यवस्थित करना चाहिए, उन्हें एक साथ जोड़ना चाहिए और उनके लिए बाढ़ का मैदान रहने देना चाहिए. साथ ही, भूजल को सतही पानी से जोड़ना जरूरी है. ये सारी चीजें पानी को प्राकृतिक रूप से बहने में मदद करती हैं.”
कृषि के लिए औद्योगिक तरीकों का इस्तेमाल करने की जगह, उसमें विविधता लाकर बाढ़ के प्रभावों को कम किया जा सकता है. इसके लिए एक तरीका एग्रोफॉरेस्ट्री का इस्तेमाल करना है, जहां जान-बूझकर खेतों में पेड़ लगाए जाते हैं.
बर्गर बताते हैं, "बाढ़ आने पर ये पेड़ पानी के बहाव को कम कर सकते हैं. पानी का बहाव जितना कम होगा, मिट्टी का कटाव भी उतना ही कम होगा. हम सभी इंसान बाढ़ या सूखे जैसी घटनाओं के साथ जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे हैं. हमें हर जगह कंक्रीट का निर्माण करने से बचना चाहिए. हमें यह मानना बंद करना होगा कि तकनीक के जरिए सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. इसकी जगह हमें प्रकृति आधारित उपायों पर जोर देना चाहिए.”