मुंबई, आठ जुलाई बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण बंद महाराष्ट्र के सभी स्कूलों को फीस संबंधी मुद्दों को कानूनी लड़ाई बनाने के बजाय इसे अभिभावकों के साथ मिलकर आपसी सहमति से सुलझा लेना चाहिये और इसके लिये बच्चों के ऑनलाइन कक्षा लेने से नहीं रोका जाए।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ भाजपा विधायक अतुल भटखल्लर की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह विचार व्यक्त किया। भाजपा विधायक की याचिका में इस बात पर चिंता जतायी गई है कि फीस का भुगतान नहीं होने पर बच्चों को ऑनलाइन कक्षाएं लेने से रोका जा रहा है। साथ ही इसमें दावा किया गया है कि स्कूल उन सुविधाओं का शुल्क नहीं मांग सकते, जिनका इस्तेमाल छात्र महामारी के दौरान नहीं कर रहे।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि स्कूलों को 50 प्रतिशत फीस कम करने का निर्देश दिया जाए।
अदालत ने बृहस्पतिवार को दो संघों 'अनएडेड स्कूल फोरम' और 'महाराष्ट्र इंग्लिश स्कूल ट्रस्टीज एसोसिएशन' को इस याचिका में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी और हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया।
अनएडेट स्कूल फोरम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जे पी सेन ने अदालत को बताया कि स्कूल उन अभिभावकों को छूट नहीं दे रहे हैं जो महामारी से पड़े आर्थिक प्रभाव के कारण फीस का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं।
पीठ ने कहा छात्रों को कक्षाएं लेने से रोकने के बजाय आम सहमति से इस मुद्दे का हल निकाल लेना चाहिये।
अदालत ने कहा, ''छाओं को कक्षाएं लेने से नहीं रोकें। इस मुद्दे को किसी और तरह हल करें। फीस ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसको कानूनी लड़ाई बनाया जाए। आपसी सहमति से इसका हल निकाला जाना चाहिये।''
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)