लंदन, आठ जुलाई भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अगुवाई में भारतीय बैंकों का एक समूह भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ ब्रिटेन के उच्च न्यायालय से दिवालियापन का आदेश पाने का प्रयास कर रहा है।
बैंकों का तर्क है कि माल्या ने कर्ज चुकाने के लिये जो पेशकश की थी वह अब अर्थहीन हो गयी है।
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लंदन उच्च न्यायालय के दिवाला शोधन खंड में मंगलवार को हुई एक सुनवाई में न्यायमूर्ति माइकल ब्रिग्स ने बैंकों का पक्ष सुना। बैंकों का पक्ष वकील मार्सिया शेकरडेमियन ने प्रस्तुत किया। शेकरडेमियन ने कहा कि माल्या के खिलाफ दिवालियापन का आदेश दिया जाना चाहिये क्यों कि माल्या का दावा है कि बैंकों के पास कर्ज के बदले में गारंटी नहीं है।
बैंकों की दलील में कहा गया, ‘‘इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि इस मामले में दिवालियापन का आदेश दिया जाना उचित होगा। इस मामले में माल्या की आपत्तियां आधारहीन हैं।’’
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ब्रिग्स ने अप्रैल में कहा था कि माल्या के खिलाफ लंदन में दिवाला कानून के तहत आदेश देने से पहले भारत में उनकी अर्जियों पर निर्णय का इंतजार करना उचित होगा।
बैंकों की दलील में कहा गया कि माल्या की दूसरी पेशकश के तहत यूनाइटेड ब्रेवरीज होल्डिंग्स लिमिटेड की जिन संपत्तियों का हवाला दिया गया है, वे संपत्तियां माल्या या पूर्ववर्ती प्रबंधन के नियंत्रण में नहीं हैं, बल्कि इन संपत्तियों पर अभी आधिकारिक बिक्रीकर्ता का नियंत्रण है। इससे साबित होता है कि माल्या के द्वारा की गयी दूसरी पेशकश अर्थहीन है। अत: इस मामले में माल्या के खिलाफ दिवालियापन का आदेश दिया जाना चाहिये।
माल्या का पक्ष रख रहे वकील फिलिप मार्शल ने बैंकों की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि बैंक सिक्योर्ड (गारंटी प्राप्त) कर्जदाता हैं, ऐसे में याचिका को निरस्त कर दिया जाना चाहिये।
भारतीय बैंकों के एसबीआई के नेतृत्व वाले समूह में बैंक ऑफ बड़ौदा, कॉर्पोरेशन बैंक, फेडरल बैंक लिमिटेड, आईडीबीआई बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, जम्मू एंड कश्मीर बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, यूको बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और जेएम फाइनेंशियल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं।
न्यायाधीश ब्रिग्स ने इस सप्ताह की सुनवाई के बाद याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है और बाद की तारीख में फैसला सुनाया जायेगा।
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