नयी दिल्ली, 13 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली पराली जलाने की घटनाएं बंद होनी चाहिए।
अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित किया कि लोग ऐसा न करें क्योंकि हर साल सर्दियों के मौसम में इसी स्थिति का सामना करना पड़ता है।
पराली जलाने की घटनाओं को गंभीर बताते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने संबंधित राज्य सरकारों को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया।
हर साल सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर को परेशान करने वाले गंभीर वायु प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आइए हम कम से कम अगली सर्दियों को थोड़ा बेहतर बनाने का प्रयास करें।’’
पीठ ने कहा कि केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में समिति की कई बैठकें हुईं और इसने इस मुद्दे से निपटने के लिए पंजाब और हरियाणा सहित राज्यों के लिए कार्य योजना तैयार की है। पीठ ने कहा कि संबंधित राज्यों को कार्य योजनाओं को लागू करना होगा और दो महीने के भीतर अदालत के समक्ष प्रगति रिपोर्ट जमा करनी होगी।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकारों को निर्देश के संबंध में कदम उठाने और आज से दो महीने के भीतर इस अदालत को प्रगति रिपोर्ट सौंपने का निर्देश देते हैं।’’ उन्होंने कहा कि अन्य प्राधिकार भी कार्य योजनाओं को विधिवत लागू करेंगे और अदालत में रिपोर्ट पेश करेंगे।
पंजाब के वकील ने कहा कि राज्य ने छह दिसंबर को एक हलफनामा दाखिल किया जिसमें पराली जलाने के लिए जिम्मेदार लोगों से पर्यावरणीय मुआवजे की वसूली के बारे में विवरण भी शामिल है।
वकील ने 21 नवंबर को पिछली सुनवाई में अदालत को बताया था कि उल्लंघन करने वालों को कुल 2 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति राशि के रूप में देने को कहा गया है। पीठ ने कहा, ‘‘वसूली गई राशि अभी भी (लगाए गए जुर्माने का) लगभग 53 प्रतिशत ही है। वसूली में तेजी लाई जानी चाहिए।’’
इस दावे पर कि 15 सितंबर से 30 नवंबर, 2023 के बीच खेतों में आग लगने की घटनाएं पहले की तुलना में कम हुई हैं, अदालत ने कहा, ‘‘मुद्दा यह है कि खेतों में पराली जलाने के मामले गंभीर हैं और इसे रोकना चाहिए।’’
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