पिछले दो दशकों में निचली अदालतों ने इन मामलों में सुनाई मौत की सजा
देश भर की निचली अदालतों ने पिछले दो दशकों में कई मामलों में विभिन्न दोषियों को मौत की सजा सुनाई है. उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं
नयी दिल्ली, 31 जनवरी : देश भर की निचली अदालतों ने पिछले दो दशकों में कई मामलों में विभिन्न दोषियों को मौत की सजा सुनाई है. उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
30 जनवरी, 2024: केरल की एक अदालत ने 2021 में भारतीय जनता पार्टी के अन्य पिछड़ा वर्ग शाख के नेता रंजीत श्रीनिवासन की हत्या के मामले में प्रतिबंधित इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े 15 लोगों को मौत की सजा सुनाई.
फरवरी 2022: अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 2008 के अहमदाबाद सिलसिलेवार विस्फोट मामले में शामिल होने के लिए 38 लोगों को मौत की सजा सुनाई. उनकी अपील और मौत की सजा की पुष्टि गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं. यह भी पढ़ें : Assam: गुवाहाटी सीमा शुल्क ने 103 सोने के बिस्कुट किए जब्त, तीन गिरफ्तार
दिसंबर 2016: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने 2013 के हैदराबाद विस्फोट मामले में इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक यासीन भटकल और चार अन्य आरोपियों को मौत की सजा सुनाई. उनकी अपीलें और मौत की सजा की पुष्टि हैदराबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं.
अप्रैल 2014: मुंबई की अदालत ने 2013 में एक बंद पड़े कपड़ा मिल के अंदर एक फोटो पत्रकार के साथ बलात्कार करने के तीन दोषियों को मौत की सजा सुनाई. बंबई उच्च न्यायालय ने नवंबर 2021 में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.
सितंबर 2013: दिल्ली में 2012 में हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में चार लोगों को मौत की सजा सुनाई गई. उन्हें मार्च 2021 में तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.
मार्च 2011: एक विशेष अदालत ने गोधरा में ट्रेन जलाने के मामले में 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई. गुजरात उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2017 में उनकी मौत की सजा को कठोर आजीवन कारावास में बदल दिया. उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जो वर्तमान में लंबित है.
जुलाई 2007: आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (टाडा) की एक विशेष अदालत ने 1993 के मुंबई सिलसिलेवार विस्फोट मामले में 12 दोषियों को मौत की सजा सुनाई. उच्चतम न्यायालय ने मार्च 2013 में याकूब मेमन की सजा बरकरार रखते हुए 10 दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. उसे 30 जुलाई 2015 को नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी दे दी गई.
राज्य की अदालतों में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार गुजरात में 2022 में निचली अदालतों में मृत्युदंड देने की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई और 2006 एवं 2021 के बीच 46 मौत की सजा की तुलना में अगस्त 2022 तक 50 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई.