देश की खबरें | एमएसपी पर तत्काल समिति गठित हो, ‘अनाज संकट’ पर श्वेत पत्र लाया जाए: कांग्रेस

नयी दिल्ली, सात जुलाई कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार पर तीनों कृषि कानूनों को पिछले दरवाजे से फिर से लाने की कोशिश करने का आरोप लगाया और सरकार से यह आग्रह भी किया कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से किए गए वादे के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर तत्काल समिति गठित की जाए और देश में चल रहे ‘अनाज संकट’ पर श्वेत पत्र लाया जाए।

मुख्य विपक्षी दल ने एमएसपी के बारे में नीति आयोग के एक सदस्य के बयान को लेकर बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि यह किसानों को सरकार द्वारा दिए गए ‘विश्वासघात के घाव’ पर नमक रगड़ने की तरह है।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘विषगुरू ने पहले देशवासियों को नज़रअंदाज़ कर टीके का निर्यात किया फिर बिना सोचे-समझे गेहूं का। नतीजा सामने है। भाजपा शासित गुजरात, उत्तर प्रदेश और कई राज्यों को जरूरत के अनुसार गेहूं नहीं मिल रहा। आटा, दही एवं अन्य चीजों पर जीएसटी के बाद गेहूं की कमी से परेशानी और बढ़ेगी।’’

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने आरोप लगाया कि किसान विरोधी मोदी सरकार पिछले दरवाजे से कृषि कानून दोबारा लाने का प्रयास कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा सरकार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा की उचित मांगों को लागू करने से इनकार किए जाने के विरोध में देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला शुरू करने के उनके फैसले का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समर्थन करती है। एसकेएम की इन मांगों में एमएसपी पर समिति गठित करने, किसानों के खिलाफ झूठे मुकदमे निरस्त करने और बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने के लिए सरकार द्वारा किसानों से किए गए लिखित वादे शामिल हैं।’’

संयुक्त किसान मोर्चा ने पिछले दिनों कहा था कि सरकार के ''विश्वासघात'' के विरोध में, 18 जुलाई को संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से 31 जुलाई - शहीद ऊधम सिंह के शहादत दिवस तक, देशभर में जिला स्तर पर ''विश्वासघात के खिलाफ विरोध जनसभाओं का आयोजन’’ किया जाएगा।

हुड्डा ने आरोप लगाया, ‘‘भाजपा सरकार की तर्कहीन कृषि व्यापार नीति भी भारतीय खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल रही है। इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ को भी सरकार की अस्थिर आयात और निर्यात घोषणाओं की आलोचना करने को बाध्य होना पड़ा है, जो केवल किसानों के हितों को चोट पहुंचाती हैं और आयात पर देश की निर्भरता को नकारात्मक रुप से बढ़ाती हैं।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘सरकार ने भाजपा शासित गुजरात और उत्तर प्रदेश सहित 10 राज्यों के लिए गेहूं के आवंटन में कटौती की है, जो संप्रग सरकार के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के सबसे बड़े लाभार्थियों में से थे। ये राज्य भारतीय नागरिकों की कीमत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत महिमामडंन की कीमत चुका रहे हैं।’’

उन्होंने नीति आयोग के एक सदस्य के बयान का हवाला देते हुए कहा कि यह किसानों को दिए गए ‘विश्वासघात के घाव’ पर नमक रगड़ना है।

उल्लेखनीय है कि नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने बुधवार को कहा कि कृषि फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि बाजार प्रतिस्पर्धी और कुशल न हो जाए, लेकिन इसे खरीद के अलावा अन्य किसी माध्यम से दिया जाना चाहिए।

एमएसपी के विषय को लेकर हुड्डा ने दावा किया, ‘‘28 मार्च को सरकार की तरफ से संयुक्त किसान मोर्चा के लोगों के पास फोन आया था कि समिति के लिए दो-तीन नाम दे दो। मोर्चा की ओर से पूछा गया कि समिति को बनाने के मानदंड और अधिकार क्षेत्र क्या होंगे ? सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। सरकार ने धोखा दिया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वादा था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुना की जाएगी, लेकिन यह तो हुआ नहीं, बल्कि किसानों का कर्ज और खर्च बढ़ गया। अब भाजपा के लोग किसानों की आय दोगुना करने की बात ही नहीं करते। यह उनके साथ बड़ा धोखा किया गया है।’’

हुड्डा ने सरकार से आग्रह किया, ‘‘तत्काल एमएसपी पर समिति का गठन हो। अनाज संकट पर श्वेत पत्र लाया जाए ताकि पता चल सके कि 10 प्रदेशों के भंडार में कटौती क्यों करनी पड़ी।’’

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)