COVID-19: गलतियां नहीं दोहराएंगे तो कोरोना के खिलाफ जंग जीत जाएंगे: के. श्रीनाथ रेड्डी

कोरोना वायरस महामारी की तीसरी लहर के बाद स्थिति सामान्य हो ही रही थी कि एक बार फिर संक्रमण के बढ़ते मामलों ने लोगों के मन में यह आशंका पैदा कर दी है कि कहीं यह चौथी लहर की आहट तो नहीं ? आम जन की इन्हीं चिंताओं पर पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष के. श्रीनाथ रेड्डी से के पांच सवाल और उनके जवाब:-

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: PTI)

नयी दिल्ली, 24 अप्रैल : कोरोना वायरस महामारी की तीसरी लहर के बाद स्थिति सामान्य हो ही रही थी कि एक बार फिर संक्रमण के बढ़ते मामलों ने लोगों के मन में यह आशंका पैदा कर दी है कि कहीं यह चौथी लहर की आहट तो नहीं ? आम जन की इन्हीं चिंताओं पर पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष के. श्रीनाथ रेड्डी से के पांच सवाल और उनके जवाब:-

सवाल: फिर से कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं और चौथी लहर की आशंकाएं जताई जा रही हैं. आपकी क्या राय है?

जवाब: संक्रमण के मामले बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि वह कोई लहर ही हो. लेकिन अगर संक्रमण के मामलों में अचानक से वृद्धि होने लगे, जांच की संख्या भी बढ़नी लगे और इसके साथ ही संक्रमण की पुष्टि की दर में भी वृद्धि होने लगे तो फिर हमें मानना पड़ेगा कि संक्रमण तेजी से फैल रहा है. इसमें अगर तेजी से वृद्धि होती है, तभी हम उसे लहर मान सकते हैं. अभी जिस तरीके से मामले बढ़ रहे हैं इसे लहर का एक संकेत ही माना जा सकता है.

सवाल: क्या वायरस के स्वरूप बदलने की संभावना अब भी बनी हुई है? कहीं यह और घातक रूप तो नहीं धारण कर लेगा?

जवाब: अभी घबराने जैसी स्थिति नहीं है. हमें फिलहाल प्रयास करना चाहिए कि संक्रमण को हम और फैलने ना दें. ज्यादा चिंता वाली बात इसलिए नहीं है, क्योंकि यह लोगों को गंभीर बीमारी की ओर नहीं धकेल रहा है. अब तो बहुत सारे लोगों को टीके भी लग चुके हैं.

वायरस के स्वरूप में जहां बदलाव आया है, वहीं दूसरी ओर हमारी ‘इम्यूनिटी’ (प्रतिरोधक क्षमता) भी बढ़ी है. ऐसे में यह आगे चलकर देखने वाली बात होगी कि कि वायरस का कोई नया स्वरूप तो नहीं है? कहीं वह हमारी इम्यूनिटी को कमजोर तो नहीं कर रहा है? कहीं गंभीर बीमारी तो पैदा नहीं कर रहा? फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं है. संक्रमण की संख्या अगर बढ़ेगी भी तो हम इससे निपट सकते हैं. हमें मास्क का उपयोग करते रहना चाहिए. बचाव के सारे उपाय करते रहना चाहिए.

सवाल: क्या यह सही समय नहीं है, जब सरकार एहतियाती खुराक सभी के लिए अनिवार्य कर दे?

जवाब: जो चिकित्सक हैं, स्वास्थ्यकर्मी हैं या जो अग्रिम मोर्चे के कर्मी हैं, उन्हें सबसे पहले सुरक्षित करने की जरूरत है. यह सरकार का मानना है. लेकिन, मेरे ख्याल से वायरस में बहुत परिवर्तन हो रहे हैं. दिन-प्रतिदिन वह अपना स्वरूप बदल रहा है. इम्यूनिटी एक समय के बाद कम होती जाती है. इस परिस्थिति में बचाव के लिए बेहतर है कि हम सभी खुद ही आगे बढ़कर ‘‘बूस्टर डोज’’ लें.

सवाल: यह वायरस विज्ञान पर भारी पड़ता दिख रहा है. तो क्या हमें इसके साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए?

जवाब: वायरस के साथ ही हमें जीना पड़ेगा, इसमें कोई शक नहीं है. वायरस को समाप्त करना इतना आसान नहीं है. हजारों सालों से वायरस हमारे साथ हैं.

अभी तक दो ही वायरस ऐसे हैं, जिन्हें हम समाप्त कर चुके हैं और वह भी टीकों के जरिए. एक तो स्मॉल पॉक्स (चेचक) है और दूसरा रिंडर पेस्ट, जो पशुओं को प्रभावित करता है. पोलियो का वायरस भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है. वायरस को पूरी तरह मिटाना आसान नहीं है लेकिन हम विज्ञान के जरिए इसके असर को, इसके प्रकोप को कम कर सकते हैं.

वायरस खत्म नहीं हो रहा है तो इसके लिए हम विज्ञान को दोष नहीं दे सकते. यह कहना अनुचित है कि भाई कि तुम इतने सारे वैज्ञानिक हो और दुनिया से एक वायरस को समाप्त नहीं कर पा रहे हो. यह भी पढ़ें : UP: पादरी ने नाबालिग लड़की को दिखाया अश्लील फिल्म, फिर किया रेप, पुलिस ने हिरासत में लिया

सवाल: कोविड़-19 के खिलाफ भारत की अब तक की लड़ाई का आप कैसे विश्लेषण करेंगे?

जवाब: दुनिया के हर देश ने इस महामारी का मुकाबला किया है लेकिन किसी को भी पूरी सफलता नहीं मिली है. पहली लहर जब आई तो सारी दुनिया इस वायरस के स्वभाव से अंजान थी. उस समय जो आवश्यक था वह केंद्र व राज्य सरकारों ने किया. लेकिन जो दूसरी लहर थी, वह हमारे लिए सीखने का मौका था. इसमें गलतियां हुईं. हमें जो सावधानी बरतनी थी, वह हमने नहीं बरती. इसकी वजह से हमे काफी नुकसान हुआ. हालांकि, इससे हमने सीखा और सुधार किया. टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया. स्वास्थ्य ढांचों से लेकर ऑक्सीजन तक पर ध्यान दिया गया. इसे हम क्रिकेट की में भी समझ सकते हैं. अगर आप वनडे क्रिकेट मैच को देखें तो शुरुआत में पिच की परिस्थिति को हम समझ नहीं पाए. फिर भी हमें ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.

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