औरंगाबाद, छह जून राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि अगर विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले “विश्वसनीय” विकल्प के साथ आता है, तो लोग इस पर विचार कर सकते हैं।
उन्होंने संसद से संबंधित गतिविधियों में संवाद के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि नए संसद भवन पर निर्णय राजनीतिक दलों के साथ बातचीत के माध्यम से लिया जा सकता था।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता महाराष्ट्र के औरंगाबाद में महात्मा गांधी मिशन विश्वविद्यालय में एक ‘सौहार्द बैठक’ में बोल रहे थे।
अगले साल होने वाले आम चुनावों के बारे में उन्होंने कहा, “मेरी चिंता यह है कि क्या लोगों का (2024) लोकसभा चुनावों के लिए वैसा ही दृष्टिकोण होगा, जैसा राज्यों (विधानसभा चुनावों) के लिए है। यदि विपक्ष एकजुट होकर एक विश्वसनीय विकल्प पेश करता है, तो लोग इस पर विचार कर सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष समझदारी से काम नहीं लेता है, तो वह लोगों से अलग विकल्प के बारे में सोचने की उम्मीद नहीं कर सकता।
कांग्रेस और जद (यू) सहित कई विपक्षी दल अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले एकता बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यदि शासक शांति और संवाद की नीति को स्वीकार करते हैं, तो किसी भी मुद्दे का समाधान निकाला जा सकता है। पवार ने कहा, “आज (देश में) स्थिति वास्तव में चिंताजनक है।”
उन्होंने चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री रहने के दौरान बाबरी मस्जिद मुद्दे पर हुए घटनाक्रम का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, “तत्कालीन प्रधानमंत्री ने बातचीत के जरिए बाबरी मुद्दे पर कोई रास्ता निकालने के लिए भैरों सिंह शेखावत और मुझे बुलाया। जबकि दोनों (हिंदू और मुस्लिम पक्ष) इसे बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते थे, सरकार गिर गई।”
इससे पहले पवार ने कहा, उन्हें औरंगाबाद स्थित मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि पहले इसका विरोध किया गया और सरकार ने फैसला वापस ले लिया। उन्होंने, “लेकिन बाद में हम कई कॉलेज में छात्रों के पास पहुंचे और उस निर्णय को लागू किया, क्योंकि हमने (उनके साथ) बातचीत की थी।”
राकांपा नेता ने कहा कि शासकों और प्रशासकों को इस सोच के साथ काम करना चाहिए कि “सब हमारे हैं” और प्रभावी ढंग से संदेश देना चाहिए। पवार ने कहा, “अन्यथा, गलत चीजें होंगी। हाल के दिनों में कई जगहों पर ऐसी चीजें हो रही हैं।”
उन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों पर हमलों पर भी चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा, “देश में आज की तस्वीर मुझे मुसलमानों और ईसाइयों के बारे में चिंतित करती है। कई राज्यों में चर्च पर हमले हो रहे हैं। ईसाई शांतिपूर्ण हैं और वे कभी भी अतिवादी रुख नहीं अपनाते हैं।”
उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि संसदीय गतिविधियों के लिए बातचीत करने में सामान्य गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी राजनीतिक दलों के बीच मतभेद थे, लेकिन उन्होंने बातचीत के जरिए उन्हें सुलझाने की कोशिश की।
उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आया कि नए संसद भवन की जरूरत क्यों पड़ी। इसके बारे में फैसला बातचीत (राजनीतिक दलों के साथ) के जरिए लिया जा सकता था। लेकिन मुझे नए भवन के बारे में अखबारों से पता चला।”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 28 मई को किए गए नए संसद भवन के उद्घाटन से 20 से अधिक विपक्षी दल दूर रहे। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर उद्घाटन को “राज्याभिषेक” की तरह मानने का आरोप लगाया।
किसी का नाम लिए बगैर पवार ने कहा, “सरकार के प्रमुख व्यक्ति नियमित रूप से संसद सत्र में भाग नहीं लेते हैं। अगर किसी दिन सरकार के मुखिया संसद में आ जाएं, तो उस दिन कुछ अलग ही एहसास होता है। संसद सबसे ऊपर है। अगर इसे महत्व नहीं दिया जाता है, तो लोगों की धारणा (इसके बारे में) भी प्रभावित होती है।”
खुद को एक “छोटे” राजनीतिक दल का नेता बताते हुए पवार ने कहा, “हमने (विपक्ष ने) नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को आमंत्रित करने की मांग की। इसका (सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा) विरोध करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। संसद के पहले सत्र के बाद ली गई एक तस्वीर में डॉक्टर बी.आर. आंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू समेत देश के कई नेता नजर आ रहे थे।”
विपक्षी दलों ने भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दरकिनार करने का आरोप लगाते हुए कार्यक्रम का बहिष्कार किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि उद्घाटन राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा किया जाना चाहिए, क्योंकि वह देश की संवैधानिक प्रमुख हैं।
पवार ने यह भी आरोप लगाया कि निर्वाचित नेताओं को पहले नए भवन में प्रवेश करने का मौका नहीं मिला। उन्होंने कहा, “नए संसद भवन की जो पहली तस्वीर सामने आई, वह निर्वाचित सदस्यों की नहीं, बल्कि भगवा वस्त्र पहने लोगों की थी।”
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