
नयी दिल्ली, 18 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को डिफेंस कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन (डीसीडब्ल्यूए) को यह बताने का निर्देश दिया कि लोधी काल के स्मारक ‘शेख अली की गुमटी’ पर छह दशकों से अधिक समय से अनधिकृत कब्जे के लिए उस पर कितना जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने एसोसिएशन को तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, साथ ही दिल्ली में 700 साल पुराने लोधी युग के मकबरे पर उसके ‘अवैध’ कब्जे की निंदा की।
उसने स्मारक की सुरक्षा में विफल रहने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से भी नाखुशी जताई।
पीठ ने दिल्ली के पुरातत्व विभाग को स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया।
अदालत को बताया गया कि ‘शेख अली की गुमटी’ का कब्जा डीसीडब्ल्यूए से भूमि एवं विकास कार्यालय को वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन की उपस्थिति में सौंप दिया गया, जिन्हें कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया गया था।
पीठ ने पहले भूमि एवं विकास कार्यालय को इस स्मारक का कब्जा ‘शांतिपूर्ण’ तरीके से सौंपने का निर्देश दिया था।
पीठ ने स्वप्ना लिडल द्वारा दायर रिपोर्ट को पढ़ने के बाद यह आदेश पारित किया था, जो भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत न्यास के दिल्ली चैप्टर की पूर्व संयोजक हैं।
अदालत ने लिडल को इमारत का सर्वेक्षण और निरीक्षण करने तथा स्मारक को हुए नुकसान और इसे बहाल करने की सीमा का पता लगाने के लिए नियुक्त किया था।
नवंबर 2024 में पीठ ने डिफेंस कॉलोनी में स्मारक की सुरक्षा करने में विफल रहने के लिए एएसआई से नाखुशी जताई थी, जब सीबीआई ने इस बात को उठाया था कि एक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन 15वीं सदी के ढांचे को अपने कार्यालय के रूप में इस्तेमाल कर रहा था।
साल 1960 के दशक से रेजिडेंट एसोसिएशन को स्मारक पर कब्जा करने की अनुमति देकर एएसआई की ओर से दिखाई गई निष्क्रियता से नाखुश पीठ ने कहा, ‘‘आप (एएसआई) किस तरह के प्राधिकार हैं? आपका काम क्या है? आप प्राचीन संरचनाओं की रक्षा करने के अपने कार्य से पीछे हट गए हैं। हम आपकी निष्क्रियता से परेशान हैं।’’
शीर्ष अदालत डिफेंस कॉलोनी निवासी राजीव सूरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1958 के तहत संरचना को संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिए अदालत से निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
उन्होंने 2019 के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी, जिसने निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने इस साल की शुरुआत में सीबीआई से उन परिस्थितियों की जांच करने और एक रिपोर्ट देने को कहा था, जिसके तहत संरचना आरडब्ल्यूए द्वारा अपने कार्यालय के रूप में कब्जा ली गई।
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