देश की खबरें | उच्च न्यायालय ने महामारी के दौरान महाराष्ट्र में अपराध दर का ब्यौरा मांगा
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मुंबई, दो जून बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि कोविड-19 महामारी के दौरान दर्ज सभी प्राथमिकियों और गिरफ्तारियों का ब्यौरा दें और राज्य में वर्तमान अपराध दर के बारे में अदालत को सूचित करें।

राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणि ने अदालत को बताया कि महामारी के दौरान जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए पात्र कैदियों को आपातकालीन पैरोल देने पर राज्य की उच्च स्तरीय समिति के आदेशों का पालन किया जा रहा है लेकिन राज्य के जेलों में अब भी भीड़भाड़ है। इसके बाद अदालत ने राज्य सरकार से अपराध दर का ब्यौरा तलब किया।

कुंभकोणि ने कहा कि ‘‘नई गिरफ्तारियों के कारण जेलों में भीड़ कम नहीं हो रही है।’’

उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के बाद उच्च स्तरीय समिति के दिशानिर्देशों के मुताबिक राज्य की सात जेलों से 2168 कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया है।

उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के बाद कैदियों एवं जेल कर्मचारियों के लिए टीकाकरण अभियान तेज कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अधिक संख्या में कैदियों की कोविड-19 जांच की जा रही है और अब कैदियों में उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटकर 114 रह गई है।

उन्होंने बताया कि आपातकालीन पैरोल के पात्र 26 कैदियों ने अभी तक अंतरिम रिहाई के लिए आवेदन नहीं किया है।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी की पीठ ने बुधवार को कहा कि राज्य को जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे का समाधान अवश्य करना चाहिए।

अदालत ने कहा कि जेलों में भीड़ इसलिए बढ़ती है कि पुलिस गिरफ्तारियां करती है। इसने कहा कि इसलिए उन्हें अर्नेश कुमार फैसले के दिशानिर्देशों से अवगत कराया जाना चाहिए।

पीठ ने जिस अर्नेश कुमार फैसले का जिक्र किया वह उच्चतम न्यायालय का 2014 का फैसला है जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी सुनिश्चित करें कि अनावश्यक गिरफ्तारियां नहीं की जाएं और मजिस्ट्रेट अकस्मात हिरासत को अधिकृत नहीं करें और विशिष्ट निर्देशों का पालन किया जाए।

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