मुम्बई, सात जुलाई बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को 38 साल की एक शादीशुदा महिला को गर्भपात कराने की अनुमति देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसकी अधिक उम्र या गर्भ के लिए उसका तैयार नहीं रहना, गर्भपात के लिए वैध कानूनी आधार नहीं है।
न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति आर आई छागला की पीठ एक महिला की अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, जिसका गर्भ गर्भपात अधिनियम के तहत इसके लिए मान्य 20 सप्ताह की समय सीमा को पार कर चुका है।
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उसकी अर्जी के अनुसार 14 मई को सोनोग्राफी से पता चला कि उसके पेट में 18 सप्ताह का गर्भ है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने गर्भपात की अनुमति के लिए 15 जून को याचिका दायर की।
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महिला ने कहा कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते वह देर से अदालत पहुंची।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वह इस गर्भ के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी, उसकी वित्तीय हालत भी किसी बच्चे के पालन-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है, तथा यह कि उसकी ‘अधिक उम्र’ का खयाल रखकर उसे गर्भपात कराने दिया जाए।
उसने यह भी कहा कि गर्भ रखे रहने से उसे मानसिक पीड़ा होगी। उसने बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के कई ऐसे फैसलों का हवाला दिया जहां महिलाओं को उसके मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर 20 सप्ताह की सीमा के बाहर भी गर्भपात की अनुमति दी गयी।
पीठ ने कहा कि लेकिन ऐसी अनुमति विशेष मामलों में दी गयीं, जहां अदालतों ने महसूस किया कि गर्भ जारी रखने से याचिकाकर्ता को आजीवन मानसिक संताप हो सकता है या पैदा होने वाले बच्चे के कल्याण को नुकसान पहुंच सकता है।
अदालत केंद्र सरकार की इस दलील से सहमत नजर आयी कि इस मामले में याचिकाकर्ता को राहत का अनुरोध करने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
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