प्रयागराज (उप्र), 30 मई मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में बृहस्पतिवार को मुस्लिम पक्ष की ओर से अधिवक्ता तस्लीमा अजीज अहमदी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा कि यह वाद वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधानों से बाधित है।
अहमदी ने कहा कि यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। उनका कहना था कि वाद में की गई प्रार्थना दर्शाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।
उन्होंने कहा, “इस प्रकार से वक्फ संपत्ति पर प्रश्न/ विवाद खड़ा किया गया है और इसलिए यहां वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे और इस तरह से इस मामले में सुनवाई का अधिकार वक्फ अधिकरण के पास है न कि दीवानी अदालत के पास।”
उन्होंने कहा कि उनके पक्ष ने 12 अक्टूबर, 1968 को एक समझौता किया था जिसकी पुष्टि 1974 में निर्णित एक दीवानी वाद में की गई। उन्होंने कहा कि एक समझौते को चुनौती देने की समय सीमा तीन वर्ष है, लेकिन वाद 2020 में दायर किया गया, इस तरह से मौजूदा वाद समय सीमा से बाधित है।
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन द्वारा की जा रही है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रखने का निर्देश दिया।
दूसरी ओर, हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने इन दलीलों का यह कहते हुए विरोध किया कि यहां जो भी दलील दी जा रही है, वह पहले कई बार दी जा चुकी है और इसमें कुछ नया नहीं है, बल्कि अदालत के समय की बर्बादी है। हालांकि, अदालत ने अहमदी को बहस जारी रखने की अनुमति दी।
यह विवाद मुगल सम्राट औरंगजेब के समय मथुरा में स्थापित शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है जिसका निर्माण कथित तौर पर भगवान कृष्ण के जन्म स्थान पर एक मंदिर को तोड़ने के बाद किया गया था।
राजेंद्र
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