अहमदाबाद, 17 जून गुजरात के पंचमहाल जिले में स्थित प्रसिद्ध महाकाली मंदिर के ऊपर बनी दरगाह को उसकी देखरेख करने वालों की सहमति से स्थानांतरित किए जाने के बाद शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब 500 साल बाद मंदिर के शिखर पर पताका फहराएंगे।
मंदिर के न्यासी अशोक पांड्या ने बताया कि मंदिर के शिखर को करीब 500 साल पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था। हालांकि, पावागढ़ पहाड़ी पर 11वीं सदी में बने इस मंदिर के शिखर को पुनर्विकास योजना के तहत पुन: स्थापित कर दिया गया है।
उन्होंने बताया कि शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनर्विकसित महाकाली मंदिर का उद्घाटन करेंगे। पांड्या ने बताया कि प्रधानमंत्री नवनिर्मित शिखर पर पारंपरिक लाल ध्वज भी फहराएंगे।
यह मंदिर चम्पानेर-पावागढ़ पुरातात्विक पार्क का हिस्सा है, जो यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने आते हैं।
पांड्या ने बताया कि माना जाता है कि ऋषि विश्वमित्र ने पावागढ़ में देवी कालिका की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की थी। मंदिर के मूल शिखर को सुल्तान महमूद बेगडा ने 15वीं सदी में चम्पानेर पर किए गए हमले के दौरान ध्वस्त कर दिया था।
उन्होंने बताया कि शिखर को ध्वस्त करने के कुछ समय बाद ही मंदिर के ऊपर पीर सदनशाह की दरगाह बना दी गई थी।’’
पांड्या ने बताया कि ‘‘ फताका फहराने के लिए खंभा या शिखर की जरूरत होती है। चूंकि मंदिर पर शिखर नहीं था, इसिलए इन वर्षों में फताका भी नहीं फहराया गया। जब कुछ साल पहले पुनर्विकास कार्य शुरू हुआ तो हमने दरगाह की देखरेख करने वालों से अनुरोध किया कि वे दरगाह को स्थानांतरित करने दें ताकि मंदिर के शिखर का पुन: निर्माण हो सके।
लोक कथा है कि सदनशाह हिंदू थे और उनका मूल नाम सहदेव जोशी था जिन्होंने उन्होंने बेगड़ा को खुश करने के लिए इस्लाम स्वीकार कर लिया था। यह भी माना जाता है कि सदनशाह ने मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त होने से बचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
पांड्या ने कहा, ‘‘ सौहार्द्रपूर्ण तरीके से दरगाह को मंदिर के करीब स्थानांतरित करने का समझौता हुआ।’’
गौरतलब है कि 125 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर का पुनर्विकास किया गया जिसमें पहाड़ी पर स्थित मंदिर की सीढ़ियों का चौड़ीकरण और आसपास के इलाके का सौंदर्यीकरण शामिल है।
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