पोरबंदर, 8 दिसंबर : गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने हिरासत में यातना देने मामले में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है और कहा कि अभियोजन पक्ष ‘‘आरोप को साबित नहीं कर सका’’. अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने शनिवार को पोरबंदर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) भट्ट को उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दर्ज मामले में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.
इससे पहले भट्ट को जामनगर में 1990 में हिरासत में हुई मौत के मामले में आजीवन कारावास और 1996 में पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए मादक पदार्थ रखने से जुड़े मामले में 20 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. वह वर्तमान में राजकोट के केंद्रीय कारागार में बंद हैं.
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘‘इन आरोपों को साबित नहीं कर सका’’ कि शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया गया और खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल कर और धमकियां देकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया गया था. अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि मामले में आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी जो उस समय एक लोक सेवक था. यह भी पढ़ें : कांग्रेस ने भारत-चीन संबंधों के संपूर्ण आयाम पर संसद में चर्चा किए जाने की मांग की
भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चाउ पर भारतीय दंड संहिता की धारा 330 (अपराध स्वीकार करवाने के लिए चोट पहुंचाना) और 324 (खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. कांस्टेबल वजुभाई की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ मामले को खत्म कर दिया गया. दोनों के खिलाफ यह मामला नारन जादव नामक व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज किया गया था जिसमें आरोप लगाया गया कि आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) और शस्त्र अधिनियम के मामले में अपराध कबूल करवाने के लिए पुलिस हिरासत में उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं.