जयपुर, 16 अक्टूबर : समाज में बढ़ती छेड़छाड़ की घटनाओं से परेशान एक सरकारी प्राथिमक स्कूल की शिक्षिका ने बालिकाओं, खास तौर पर दृष्टिबाधित और श्रवणबाधित बच्चों को आत्मरक्षा के गुर सिखाने का बीड़ा उठाया है और इसके लिए वह विशेष तकनीक की मदद भी ले रही हैं. अलवर जिले के राजगढ़ में खरखड़ा के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत 40 वर्षीय शिक्षिका आशा सुमन ने पहली बार 2015 में पुलिस विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया और यहीं से उन्हें बिना हथियारों के, लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देने की प्रेरणा मिली.
वह मानती हैं कि दिव्यांग लड़कियों को यौन उत्पीड़न का खतरा अधिक होता है इसलिए उन्हें ऐसी स्थिति में अपनी रक्षा करने के लिए प्रशिक्षित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है. ऐसी लड़कियों के सामने आने वाली चुनौती को महसूस करते हुए शिक्षिका ने 2019 में अपने खर्च पर मुंबई में आत्मरक्षा का एक विशेष प्रशिक्षण लिया और फिर दूसरों को प्रशिक्षित करने लगीं. शिक्षिका आशा सुमन ने पिछले तीन वर्षों में राज्य के विभिन्न हिस्सों से आईं ऐसी 300 से अधिक लड़कियों को प्रशिक्षित किया है. अधिकतर लड़कियों ने राज्य शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित वार्षिक प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया. अन्य लड़कियों को उनके द्वारा अलवर में प्रशिक्षित किया गया. यह भी पढ़ें : असम की राजनीति में नई जान फूंकेगी कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’, अंदरूनी कलह भी होगी खत्म
जयपुर में दिव्यांग, दृष्टिबाधित लड़कियों के लिये 6 से 15 अक्टूबर तक आयोजित, आत्मरक्षा संबंधी राजकीय प्रशिक्षण शिविर में 11 दृष्टिबाधित बालिकाओं सहित 55 दिव्यांग बालिकाओं को प्रशिक्षण दिया गया. यह प्रशिक्षण अलवर की आशा सुमन और झालावाड़ की एक अन्य प्रशिक्षक कृष्णा वर्मा ने दिया. शिक्षिका सुमन ने ‘‘’’ को बताया “सामान्य लड़कियों की तुलना में दृष्टिबाधित लड़कियों के यौन शोषण का खतरा अधिक होता है. वे देख नहीं सकतीं, और न ही उन तकनीकों की कल्पना कर सकती हैं जो उन्हें सिखाई जाती हैं इसलिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. ’’