वाशिंगटन, चार नवंबर एक शीर्ष भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक ने कहा है कि वैश्विक अंतरिक्ष सहयोग भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का अभिन्न अंग है और अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तरह एक और सेंटर के लिए राष्ट्रों के एक साथ आने के विचार का समर्थन किया है।
वर्तमान में भारतीय दूतावास में अंतरिक्ष (इसरो) के परामर्शदाता क्रुणाल जोशी ने हाल ही में एक सम्मेलन में बताया कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की इस पूरी यात्रा में, वैश्विक अंतरिक्ष सहयोग हमेशा ‘एक अभिन्न अंग’ रहा है ।
लास वेगास में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ एरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स (एआईएए) द्वारा 24 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक आयोजित प्रतिष्ठित एएससीईएनडी सम्मेलन में दो-परिचर्चा में भाग लेते हुए, जोशी ने अंतरिक्ष वैज्ञानिक समुदाय को बताया कि भारत ने 33 देशों के 350 से अधिक उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं।
भारत ने 1960 के दशक में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन को संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किया और यहां से कई तरह के शोध और प्रयोग किए गए। भारत के आज 55 से अधिक देशों और पांच बहुराष्ट्रीय निकायों के साथ 230 से अधिक समझौते हैं। इसमें उपग्रहों के निर्माण से लेकर क्षमता निर्माण तक शामिल है।
उन्नति (यूनिस्पेस नैनोस्टेलाइट असेम्बली एंड ट्रेनिंग) संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में इसरो द्वारा शुरू किया गया कार्यक्रम है, जहां भारत नवोदित देशों को यह बताने में मदद कर रहा है कि क्षमता निर्माण, उपग्रह निर्माण के साथ वे कैसे नैनो उपग्रहों का निर्माण कर सकते हैं।
2019 में भारत में 32 देशों के 60 अधिकारी थे और 2022 में 22 देशों के 32 अधिकारी हैं। तो, यह एक ऐसा कार्यक्रम है जो आगे आने वाले देशों के लिए अच्छा कर रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत का चंद्रयान-I इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग कुछ बड़ा हासिल करने में मदद कर सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया जैसे देशों ने अपने पेलोड के साथ योगदान दिया और वर्तमान में 50 से अधिक देश विज्ञान का अनुकरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे बड़े देश अंतरिक्ष में एक साथ आ सकते हैं।
एक सवाल के जवाब में, एक परिचर्चा के दौरान, जोशी ने कहा कि भारत के अपने स्वयं के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करने की संभावना नहीं है, लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय सहयोग के विचार का समर्थन करता है।
जोशी ने कहा, “भारत के लिए अपना स्वयं का एक संपूर्ण अंतरिक्ष स्टेशन होना बहुत मुश्किल है। हमें पता नहीं। मुझे नहीं लगता कि यह अधिक व्यवहार्य समाधान होगा। देशों के लिए एक साथ आने और आईएसएस में हमने जो किया, उसे दोहराना एक अधिक व्यवहार्य समाधान होगा।’’
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