जरुरी जानकारी | चालू वित्त वर्ष में ऋण वृद्धि दर 15 प्रतिशत बनाये रखने की उम्मीद है: एसबीआई अध्यक्ष

नयी दिल्ली, 15 अगस्त भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने कहा है कि उधार दर सख्त होने के बावजूद खुदरा और कॉर्पोरेट उधारकर्ताओं की बढ़ती मांग के कारण उसे उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में ऋण वृद्धि दर लगभग 15 प्रतिशत तक बनाकर रखी जा सकेगी।

देश के इस सबसे बड़े ऋणदाता बैंक का 30 जून, 2022 को समाप्त पहली तिमाही में अग्रिम 14.93 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 29,00,636 करोड़ रुपये रहा, जबकि एक साल पहले इसी अवधि के दौरान यह अग्रिम राशि 25,23,793 करोड़ रुपये थी।

इसमें से खुदरा ऋण में 18.58 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई, जबकि कॉर्पोरेट अग्रिमों में जून तिमाही के अंत में सालाना आधार पर 10.57 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

एसबीआई के अध्यक्ष दिनेश कुमार खारा ने यह भी कहा कि बैंक जल्द ही केवल योनो (एकीकृत डिजिटल बैंकिंग मंच) के साथ आएगा जो कि योनो 2.0 है जिसमें कई और उन्नत सुविधाएं हैं एवं यह कामकाज करने की सुविधाओं से लैस हैं।

उन्होंने हाल ही में एक विश्लेषक कॉल में कहा, ‘‘बैंक की डिजिटल कामकाज की अगुवाई जारी है। बैंक के साथ 96.6 प्रतिशत से अधिक लेनदेन अब वैकल्पिक चैनलों के माध्यम से किए जाते हैं। योनो पर पंजीकृत उपयोगकर्ताओं की संख्या पहले ही 5.25 करोड़ को पार कर चुकी है, जो एक बड़ी उपलब्धि है और जिसने बैंक के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव प्रदान किया है। पैंसठ प्रतिशत नए बचत खाते योनो के माध्यम से खोले गए हैं।’’

आरबीआई द्वारा दर में हाल में वृद्धि किये जाने के बाद, रेपो दर (अल्पकालिक उधार दर जिस पर बैंक केंद्रीय बैंक से उधार लेते हैं) बढ़कर 5.40 प्रतिशत हो गई, जो इस साल मई से 140 आधार अंकों की वृद्धि को दर्शाता है।

मौजूदा आर्थिक स्थिति पर, खारा ने कहा कि सरकार के बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम की बदौलत कोविड महामारी का प्रभाव काफी हद तक कम हो गया है।

उन्होंने कहा कि अधिकांश देशों द्वारा हवाई यात्रा फिर से शुरू करने और अन्य रोकथाम उपायों को हटाने के साथ अर्थव्यवस्था लगभग पटरी पर आ गई है।

हालांकि, उन्होंने कहा, अस्थिर भू-राजनीतिक स्थिति से जोखिम अभी भी बना हुआ है। चीन और रूस में मंदी के चलते इस साल की दूसरी तिमाही में वैश्विक उत्पादन सिकुड़ गया है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक बाधाओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की जिजीविषा कायम है, जिन बाधाओं के परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति में वृद्धि, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, जिंसों की कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।

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