नयी दिल्ली, नौ जुलाई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को रियल इस्टेट कंपनी सुपरटेक लिमिटेड के खिलाफ अवमानन का मामला बंद कर दिया। कंपनी ने न्यायालय को बताया कि उसने उत्तर प्रदेश के नोएडा में स्थित अपनी एमराल्ड कोर्ट परियोजना में फ्लैट बुक करने वालों में से कुछ के पैसे वापस कर दिए हैं। न्यायाल ने इसके बाद उसके खिलाफ अवमानना का मामला बंद कर दिया गया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नियमों के उल्लंघन के खिलाफ निर्माण की वजह से परियोजना के में दो 40 मंजिलों के अपार्टमेंट टावर ध्वस्त करने का आदेश दिए हैं।कंपनी का दावा है कि उसने स्वीकृत योजना के अनुसार ही भवनों ये दोनों विशाल टावर बनाए हैं।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की एक पीठ ने कहा कि सुपरटेक लिमिटेड की एक याचिका 2014 से लंबित है। पीठ ने इसके निस्तारण के लिए अगले हफ्ते की तरीख तय कर दी।
मामने में न्यायमित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने कहा कि एकमात्र सवाल जिसपर फैसला लिया जाना बाकी है, वह यह है कि क्या नोएडा प्राधिकरण द्वारा निर्माण के लिए दी गयी मंजूरी कानूनी थी या नहीं।
सुपरटेक लिमिटेड की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि अदालत को इस बात की जांच करनी होगी कि टावरों की ऊंचाई जो 73 मीटर से बढ़ाकर 120 मीटर की गई थी वह वैध है या नहीं।
उन्होंने कहा कि कंपनी ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न आदेशों का पालन करते हुए उसकी रजिस्ट्री में 50 करोड़ रुपये से अधिक राशि जमा कर दी है।
पीठ ने इस बात का संज्ञान करते हुए कि उसके पूर्व के आदेशों का पालन किया गया है, घर खरीदारों द्वारा दायर अवमानना का मामला बंद कर दिया और अगली सुनवाई अगले हफ्ते के लिए तय कर दी।
रियल इस्टेट कंपनी ने उसके दो 40 मंजिला टावर को गिराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी।
दोनों टावर में कुल 857 अपार्टमेंट हैं जिनमें से करीब 600 पहले ही बेचे जा चुके हैं। दोनों टावर कंपनी की एमराल्ड कोर्ट परियोजना का हिस्सा हैं।
कई घर खरीदारों ने कंपनी को उनके पैसे वापस करने या घरों का निर्माण समय पर पूरा करने का निर्देश देने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
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