नयी दिल्ली, आठ जनवरी दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह खाद्य तेल-तिलहन के कारोबार में मिला-जुला रुख रहा। एक ओर जहां सरसों और सोयाबीन तेल-तिलहन (सोयाबीन दाना को छोड़कर) और कच्चे पामतेल (सीपीओ) की कीमतों में गिरावट दर्ज हुई, वहीं हल्की मांग होने के अलावा किसानों द्वारा मंडियों में आवक कम लाने से सोयाबीन दाना, मूंगफली तेल-तिलहन और बिनौला तेल कीमतों में मजबूती रही। सामान्य कारोबार के बीच बाकी तेल-तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर ही बने रहे।
बाजार सूत्रों ने कहा कि पिछले मौसम में सरसों उत्पादन 25 प्रतिशत बढ़ा था और अप्रैल, मई और जून, 2022 में विदेशी तेलों की महंगाई के दौरान सरसों तेल के अलावा सरसों का रिफाइंड बनाये जाने के बावजूद इन तेलों की कीमत विदेशी आयातित तेलों से लगभग 20 रुपये किलो सस्ती थी। उसके बाद जून-जुलाई में जब विदेशी तेलों की कीमतें टूटना शुरू हुईं, उसके बाद सरसों की खपत कम होती चली गई। हालात ऐसे हैं कि सस्ते आयातित तेलों के सामने महंगा बैठने की वजह से सरसों खप नहीं रहा और इसी वजह से इसके तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट है। ठीक यही हाल सोयाबीन का भी है।
उन्होंने कहा कि सस्ते आयातित तेलों के आगे सरसों की खपत नहीं होने से पिछले साल का बचा हुआ सरसों का स्टॉक सिर्फ एक लाख टन रह गया था। इस बार सरसों का रकबा निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाया है। पिछले साल सरसों खेती का रकबा लगभग 25 प्रतिशत बढ़ा था लेकिन इस बार रकबा छह-सात प्रतिशत ही बढ़ा है। पहले आयातित तेलों के मुकाबले सरसों तेल सस्ता था लेकिन इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के हिसाब से आयातित तेल के मूल्य से सरसों 25-30 रुपये महंगा बैठेगा। अब प्रश्न यह है कि आगामी फसल बाजार में खपेगी कहां? सरसों तेल उद्योग के सामने दिक्कत यह है कि किसान सस्ते में बेचने को राजी नहीं और पेराई कर भी ली जाये तो सस्ते आयातित तेल के सामने यह बिकेगा कैसे?
सूत्रों ने कहा कि आयातित तेलों का सस्ता भाव बना रहा तो अगले वर्ष देश में 60-70 लाख टन सरसों का स्टॉक बचा रह जायेगा। सरसों का रिफाइंड भी नहीं बन पायेगा और सोयाबीन का भी यही हाल होने की पूरी संभावना हो सकती है। इससे तिलहन बुवाई पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
मंडियों में आवक घटने के कारण बिनौला तेल कीमतों में मजबूती आई। देश में कपास की लगभग 50 प्रतिशत जिनिंग मिलें बंद हो चुकी हैं जबकि पंजाब में लगभग 90 प्रतिशत जिनिंग मिलें बंद हो गई हैं। आवक घटने के कारण पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया।
सूत्रों के मुताबिक, तेल सस्ता होने से दूध की कीमत बढ़ने का सीधा संबंध है। तेल सस्ता होने का मतलब है कि खल या डीओसी कम मिलेगा। डीओसी और खल महंगा होने पर मवेशियों और मुर्गीपालकों की लागत बढ़ेगी और इससे दूध और अंडों की कीमतें बढ़ रही हैं।
सूत्रों ने कहा कि किसानों द्वारा नीचे भाव में बिकवाली नहीं करने से सोयाबीन दाना में सुधार है पर सोयाबीन लूज में गिरावट की वजह है कि खरीदार छांट कर इसकी खरीद करते हैं। इसके अलावा मंडी खर्च बढ़ने से भी सोयाबीन लूज में गिरावट है। विदेशों में बाजार बुरी तरह टूटने से यहां सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट आई है।
निर्यात मांग के साथ स्थानीय खाने की मांग होने से इसके तेल-तिलहन की कीमतों में सुधार है।
सूत्रों ने कहा कि सीपीओ का प्रसंस्करण कर पामोलीन तेल निकालने में खर्च बढ़ने की वजह से सीपीओ की मांग कमजोर रही और ग्राहक सीधा पामोलीन खरीद रहे हैं। इस वजह से सीपीओ में गिरावट है। विदेशों से आयात करना महंगा बैठने और सोयाबीन के मुकाबले पामोलीन के सस्ता होने की वजह से पामोलीन की मांग के बीच पामोलीन तेल की कीमतें पिछले सप्ताहांत के स्तर पर ही जस की तस बनी रहीं।
सूत्रों का कहना है कि सरकार को तेल-तिलहन कारोबार की इन जटिलताओं को ध्यान में रखकर कदम उठाना चाहिये। उन्होंने कहा कि सरकार को पहले कोटा प्रणाली की छूट समाप्त कर देनी चाहिये और आयातित तेलों पर आयात शुल्क लगा देना चाहिये। इससे देशी तिलहनों की खपत हो पायेगी।
सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का भाव 60 रुपये की गिरावट के साथ 6,885-6,935 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 300 रुपये की हानि के साथ 13,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 50-50 रुपये घटकर क्रमश: 2,080-2,210 रुपये और 2,140-2,265 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने का भाव 50 रुपये सुधरकर 5,700-5,800 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि सोयाबीन लूज का थोक भाव 25 रुपये की गिरावट के साथ 5,445-5,465 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के दाम भी क्रमश: 400 रुपये, 200 रुपये और 150 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 13,550 रुपये, 13,400 रुपये और 11,800 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
किसानों के कम भाव में बिकवाली नहीं करने और निर्यात के साथ स्थानीय खाने की मांग के कारण समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों में सुधार देखने को मिला। समीक्षाधीन सप्ताहांत में मूंगफली तिलहन का भाव 100 रुपये बढ़कर 6,635-6,695 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पूर्व सप्ताहांत के बंद भाव के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 250 रुपये बढ़कर 15,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 20 रुपये बढ़कर 2,480-2,745 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
प्रसंस्करण की लागत को देखते हुए मांग कमजोर होने से समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) में गिरावट आई और इसका भाव 100 रुपये की हानि के साथ 8,600 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 10,300 रुपये और पामोलीन कांडला का भाव 9,300 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित रहा।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)