देश की खबरें | विकासशील देशों ने सीओपी29 जलवायु वार्ता में एकतरफा व्यापार उपायों का कड़ा विरोध किया

नयी दिल्ली, 15 नवंबर विकासशील देशों ने शुक्रवार को सीओपी29 जलवायु वार्ता में जलवायु कार्रवाई के नाम पर किये जा रहे एकतरफा व्यापार उपायों का कड़ा विरोध किया और इन्हें ‘‘भेदभावपूर्ण’’ तथा वैश्विक सहयोग के लिए हानिकारक बताया।

उन्होंने दलील दी कि ये उपाय समता व समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं तथा बिल्कुल अलग-अलग जिम्मेदारियां (सीबीडीआर) निर्धारित करते हैं।

शिखर सम्मेलन के पहले दिन लंबी बहस के बाद भी यह प्रस्ताव औपचारिक एजेंडे में शामिल नहीं हो सका, लेकिन सीओपी29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबयेव ने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श की घोषणा की, जिसके परिणाम सम्मेलन के समापन पर साझा किए जाएंगे।

शुक्रवार को हुए विचार-विमर्श में हस्तक्षेप करते हुए, भारत ने कहा कि यह वैश्विक चिंता का विषय है जिस पर तत्काल विचार करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकासशील देशों के विकास के रास्ते बाधित न हों।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में 130 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले सबसे बड़े समूह जी77 और समान विचारधारा वाले विकासशील देशों सहित विकासशील देशों के अन्य समूहों ने भी इस मुद्दे पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया।

हालांकि, विकसित देशों, विशेष रूप से यूरोपीय संघ (ईयू) ने तर्क दिया कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सही मंच नहीं है, क्योंकि इस पर पहले से ही विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा विचार किया जा रहा है।

भारत ने कहा कि प्रतिबंधात्मक एकतरफा उपाय विकासशील और कम आय वाले देशों को कम कार्बन अर्थव्यवस्थाओं में लागत वहन करने के लिए मजबूर करते हैं। इससे विकसित देशों की जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं को नुकसान पहुंचता है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से औद्योगीकरण से लाभ हुआ है और जिन्होंने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान दिया है।

उसने कहा, ‘‘इसका विकसित देशों द्वारा जुटाए जाने वाले जलवायु वित्त पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। यह पीड़ित से उपाय के लिए भुगतान करने के लिए कहने जैसा है।’’

भारत ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रियाओं के नाम पर कोई भी एकतरफा उपाय विकासशील देशों के प्रति भेदभावपूर्ण और बहुपक्षीय सहयोग के लिए हानिकारक है। वे समानता के सिद्धांतों और सीबीडीआर-आरसी तथा यूएनएफसीसीसी के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।’’

भारत ने कहा कि जलवायु कार्रवाई के नाम पर व्यापार के एकपक्षीय उपाय ‘भेदभावपूर्ण होते हैं और बहुपक्षीय सहयोग को नुकसान पहुंचाते हैं’। भारत ने कहा कि ये संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन समझौते के सिद्धांतों के भी खिलाफ हैं।

उसने कहा कि एकतरफा व्यापार उपाय निर्यात की लागत बढ़ाकर निर्यात-आधारित विकास के माध्यम से औद्योगीकरण करने की इच्छा रखने वाले देशों के साथ भेदभाव करते हैं।

भारत ने कहा कि यदि लक्ष्य वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करना है, तो जलवायु नीतियों को रियायती वित्त की पेशकश और शमन और अनुकूलन दोनों पर ध्यान देने के लिए देशों की क्षमता का निर्माण करने पर जोर देना चाहिए।

भारत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित व्यापार उपायों का सतत विकास और गरीबी उन्मूलन के प्रयासों के संदर्भ में न्यायसंगत और उचित बदलावों पर उनके संभावित प्रभाव के लिए मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

उसने कहा कि किसी भी व्यापार-संबंधी जलवायु नीति में न्यायसंगत और उचित बदलावों, सतत विकास और गरीबी उन्मूलन पर इसके प्रभाव पर विचार होना चाहिए।

सीओपी29 के उद्घाटन सत्र में सोमवार को काफी विलंब हो गया, क्योंकि विकसित और विकासशील देश इस बात पर बहस कर रहे थे कि यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) जैसे ‘एकतरफा व्यापार उपायों’ को एजेंडा में शामिल किया जाए या नहीं।

चीन ने ‘बेसिक’ (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) समूह की ओर से पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र जलवायु निकाय को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि इस वर्ष के सीओपी में एकतरफा व्यापार उपायों के मुद्दे पर ध्यान दिया जाए।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने सीबीएएम को ‘एकतरफा और मनमाना’ करार दिया था और कहा था कि इस तरह के उपायों से भारत के उद्योगों को नुकसान पहुंच सकता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संतुलन बिगड़ सकता है।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) के अनुसार, सीबीएएम भारत से ईयू को निर्यात किए जाने वाले कार्बन-गहन सामानों पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत कर लगाएगा। यह कर भार भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 0.05 प्रतिशत होगा।

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