Paris Olympics 2024 Flame: आसमान में बादलों के कारण सूर्य की किरणें नहीं दिखीं और मंगलवार को पारंपरिक तरीके से लौ जलाने के प्रयास विफल हो गये. पारंपरिक तरीके में चांदी की मशाल जलाने के लिए सूरज की किरणों का इस्तेमाल किया जाता है जिसके लिए प्राचीन यूनान की पुजारिन की पोशाक पहने एक युवती हाथ में मशाल लिये रहती थी. यूनान के सूर्य देवता ‘अपोलो’ की प्रार्थना के बाद किरणों से लौ जलायी जाती थी. लेकिन इसके बजाय मंगलवार को एक ‘बैकअप’ लौ का उपयोग किया गया था जिसे सोमवार को अंतिम ‘रिहर्सल’ के दौरान उसी स्थान पर जलाया गया था. यह भी पढ़ें: भारत के पहले स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा को मशाल वाहक चुना गया
सामान्यत: चुन्नटवाली लंबी पोशाक पहने पुजारिनों का एक समूह ईंधन से भरी मशाल को एक अवतल दर्पण ‘पैराबोलिक मिरर’ के सामने रखता जिससे सूर्य की किरणें मशाल पर केंद्रित हो जाती और लौ जलने लगती
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🔥 The Olympic flame for #Paris2024 is lit!#Paris2024 | @Paris2024 pic.twitter.com/1odw4ga9G0
— The Olympic Games (@Olympics) April 16, 2024
लेकिन इस बार ऐसी कोशिश ही नहीं की गयी. सीधे ‘बैकअप’ का इस्तेमाल किया गया। विडंबना यह है कि कुछ मिनट बाद सूरज चमकने लगा. ओलंपिया के प्राचीन स्टेडियम से मशालधारियों की रिले मशाल को प्राचीन ओलंपिया के खंडहर मंदिरों और खेल मैदानों से 5000 किमी (3100 मील) से ज्यादा की दूरी तक ले जायेगी. यूनान में रिले की 11 दिवसीय यात्रा एथेंस में 26 अप्रैल को पेरिस 2024 के आयोजकों को मशाल सौंपने के साथ समाप्त होगी.
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थामस बाक ने कहा, ‘‘इस मुश्किल समय में जब युद्ध और संघर्ष बढ़ रहे हैं. लोग नफरत, आक्रामकता और नकारात्मक खबरों से तंग आ चुके हैं. हम किसी ऐसी चीज की आस लगाये हैं जो हमें एक साथ लाती है जो एकजुट करती है और कुछ ऐसी चीज जो हमें उम्मीद देती है. ’’
सबसे पहले मशाल यूनान के रोअर स्टेफानोस डोस्कोस को दी गयी जिन्होंने तोक्यो में 2021 में स्वर्ण पदक जीता था. वह इसे लेकर करीब के स्मारक की ओर भागे. इसके बाद मशाल फ्रांस की तैराक लौरे मानाउडोउ को सौंपी गयी जिन्होनें 2004 में एथेंस में तीन पदक जीते थे. उन्होंने मशाल यूरोपीय संघ के एक सीनियर अधिकारी मारगारिटिस शिचिनास को सौंपी.
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