विदेश की खबरें | बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन, कर्फ्यू के बावजूद बढ़ी मृतकों की संख्या
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

बांग्लादेश में हिंसा भड़कने से कई लोगों की मौत हुई है जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए हैं।

शुक्रवार को मरने वाले लोगों की संख्या के बारे में अलग-अलग रिपोर्ट सामने आईं और ‘समय’ टीवी के अनुसार 43 लोग मारे गए हैं।

‘एसोसिएटेड प्रेस’ के एक संवाददाता ने ढाका मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में 23 शव देखे, लेकिन यह तत्काल स्पष्ट नहीं हो पाया कि क्या उन सभी की मौत शुक्रवार को हुई थी।

बृहस्पतिवार को प्रदर्शनकारी छात्रों द्वारा देश में “पूर्ण बंद” लागू करने के प्रयास के दौरान 22 लोगों की मौत हुई थी। मंगलवार और बुधवार को भी कई लोग मारे गए थे।

राजधानी ढाका और अन्य शहरों में सड़कों व विश्वविद्यालय परिसरों में पुलिस तथा प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। अधिकारियों ने मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगा दी है। कुछ टेलीविजन समाचार चैनलों में भी कामकाज बंद हो गया है तथा अधिकांश बांग्लादेशी समाचार पत्रों की वेबसाइट नहीं खुल रही हैं।

मृतकों की संख्या की पुष्टि करने के लिए अधिकारियों से तत्काल संपर्क नहीं हो सका, लेकिन ‘डेली प्रथम आलो’ समाचार पत्र की खबर में बताया गया है कि मंगलवार से अब तक 103 लोगों की मौत हुई है।

ढाका में अमेरिका के दूतावास ने शुक्रवार को कहा कि खबरों से पता चलता है कि बांग्लादेश में “सैकड़ों से लेकर संभवतः हजारों लोग” घायल हुए हैं।

दूतावास ने कहा कि स्थिति “बेहद अस्थिर” है।

देश में कर्फ्यू आधी रात से शुरू हुआ। दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक इसमें ढील दी जाएगी ताकि लोग जरूरी सामान खरीद सकें। इसके बाद रविवार सुबह 10 बजे तक कर्फ्यू फिर से लागू रहेगा।

सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के महासचिव और सांसद उबेद-उल-कादर ने बताया कि उपद्रवियों को “देखते ही गोली मारने” का आदेश जारी किया गया है।

प्रदर्शनकारी उस प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं जिसके तहत 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में लड़ने वाले पूर्व सैनिकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जाता है।

प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थकों को लाभ पहुंचा रही है। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पार्टी ने मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया था। छात्र चाहते हैं कि इसे योग्यता आधारित प्रणाली में तब्दील किया जाए।

वहीं हसीना ने आरक्षण प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि युद्ध में भाग लेने वालों को सम्मान मिलना चाहिए भले ही वे किसी भी राजनीतिक संगठन से जुड़े हों।

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