नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर एक स्थानीय अदालत ने बृहस्पतिवार को कहा कि दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में कई आरोपियों से एकत्र की गई मोबाइल सामग्री सह-अभियुक्तों को प्रदान नहीं की जा सकती क्योंकि इसमें कथित तौर पर अश्लील सामग्री है और इससे उनकी निजता प्रभावित होगी।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और 13 अन्य इस मामले में आरोपी हैं और उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हुई सुनवाई में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अभियुक्तों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 207 के तहत दायर आवेदनों के जवाब में मौखिक रूप से यह टिप्पणी की।
न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा, "ऐसे कुछ आवेदन आए हैं जहां अभियोजन पक्ष ने अन्य सह-आरोपी व्यक्तियों की कुछ व्यक्तिगत सामग्री को आवेदक को उपलब्ध कराने पर अपनी आपत्ति जताई है।’’
उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष ने उन्हें कुछ तस्वीरें और विवरण दिखाए जो आरोपी व्यक्तियों के मोबाइल फोन में मिली सामग्री का एक नमूना है। न्यायाधीश ने कहा, "उन तस्वीरों और वीडियो को देखने से यह किसी को भी उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है।"
उन्होंने कहा, "मुझे बताया गया है कि आरोपी व्यक्तियों के कुछ ऑडियो और वीडियो हैं जिन्हें किसी को नहीं दिया जा सकता है।’’
न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा, "कुछ अश्लील वीडियो हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी व्यक्तियों ने ये खुद बनायी है। इसलिए, मुझे लगता है कि आप समझेंगे कि यह गोपनीयता और निजता को प्रभावित करेगा।’’
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि सब कुछ अश्लील नहीं है, आरोपी व्यक्तियों की कुछ व्यक्तिगत तस्वीरें भी हैं।
इस मामले के 18 आरोपियों पर कड़े आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है और उन पर फरवरी 2020 के दंगों के "षडयंत्रकर्ता" होने का आरोप है। दंगे की घटनाओं में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।
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