नयी दिल्ली, चार नवंबर एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों से संबंधित मामले में बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ता खालिद सैफी को जमानत प्रदान कर दी और कहा कि सैफी के खिलाफ ''महत्वहीन'' सामग्री के आधार पर तैयार किए गए आरोपपत्र में पुलिस ने कोई दिमाग नहीं लगाया और ''बदले की भावना'' तक चली गयी।
अदालत यह भी समझने में नाकाम रही कि साजिश रचने के दावे का केवल एक गवाह के बयान के आधार पर कैसे अनुमान लगाया जा सकता था? बयान में केवल इतना कहा गया कि ''यूनाइटेड अग्रेंस्ट हेट'' के सदस्य सैफी ने कथित तौर पर शाहीन बाग में आठ जनवरी को सह-आरोपी ताहिर हुसैन और उमर खालिद से मुलाकात की थी लेकिन मुलाकात के विषय का खुलासा नहीं किया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि इस मामले में ''बनावटी'' सामग्री के आधार पर सैफी को जेल में रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
खजूरी खास इलाके में हुए दंगे से संबंधित मामले में अदालत ने 20,000 रूपये के मुचलके और इनती ही राशि की जमानत के बाद सैफी को राहत प्रदान की।
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अदालत ने कहा कि यदि सैफी ही मुख्य अरोपी ताहिर हुसैन को बैठक में ले गया था तब सैफी को भी ताहिर हुसैन की तरह अन्य 10 मामलों में सह-आरोपी बनाया जाना चाहिए था, ''जो मामला नहीं है।''
उन्होंने कहा कि गवाह का बयान 27 सितंबर को दर्ज किया गया जो अपने आप में इसकी ''विश्वसनीयता'' को दर्शाता है।
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