नयी दिल्ली, 28 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह केंद्र की उस दलील पर निर्णय लेगा कि राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर विवाद पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजा जाए। इस याचिका का आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार ने कड़ा विरोध किया है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और दिल्ली सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद कहा, ‘‘हम विचार करेंगे और जल्द से जल्द फैसला लेंगे।’’
सिंघवी ने कहा, ‘‘यह अदालत हर बार छोटी-सी बात को भी पीठ के पास भेजने के लिए नहीं बनी है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि तीन या पांच न्यायाधीश हों। सवाल यह नहीं है कि क्यों नहीं, बल्कि क्यों है।’’
उन्होंने कहा कि 2018 की संविधान पीठ के फैसले में कोई दुविधा नहीं है लेकिन अगर कोई दुविधा है भी तो मौजूदा पीठ इस पर निर्णय कर सकती है।
वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की आवश्यकता है क्योंकि पूर्व पांच सदस्यीय पीठ के फैसले में यह निर्णय करने के लिए ‘‘कोई रूपरेखा’’ नहीं दी गयी कि विवाद के तहत आने वाले विषयों से निपटने का अधिकार केंद्र के पास है या दिल्ली सरकार के पास ।
मेहता ने कहा , पीठ ने कहा है कि वृहद संविधान पीठ ने कुछ पहलुओं पर विचार नहीं किया और अतत: विवाद को संविधान पीठ के पास भेजने की आवश्यकता है।
केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया था कि उसे दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण करने की जरूरत इसलिए है क्योंकि वह राष्ट्रीय राजधानी और देश का चेहरा है।
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा था कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की शासन प्रणाली में विधानसभा और मंत्रिपरिषद होने के बावजूद, आवश्यक रूप से केंद्र सरकार की केंद्रीय भूमिका होनी चाहिए। मेहता ने कहा कि यह किसी विशेष राजनीतिक दल के बारे में नहीं है।
यह याचिका 14 फरवरी 2019 के उस विभाजित फैसले को ध्यान में रखते हुए दायर की गयी है, जिसमें न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की दो सदस्यीय पीठ ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को उसके विभाजित फैसले के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर अंतिम फैसला लेने के लिए तीन सदस्यीय पीठ का गठन करने की सिफारिश की थी। दोनों न्यायाधीश अब सेवानिवृत्त हो गए हैं।
न्यायमूर्ति भूषण ने तब कहा था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं हैं। हालांकि, न्यायमूर्ति सीकरी ने इससे अलग फैसला दिया था।
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