नयी दिल्ली, 05 अक्टूबर: दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिटबुल, टेरीयर्स, अमेरिकन बुलडॉग, रोटवाइलर जैसी ‘खतरनाक’ नस्ल के कुत्तों को रखने के लाइसेंस पर पाबंदी लगाने एवं उसे रद्द करने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से बृहस्पतिवार को मना कर दिया. मुख्य न्यायाधीश सतीशचंद्र शर्मा की अगुवाई वाली पीठ ने याचिकाकर्ता लीगल अटॉर्नीज एंड बैरिस्टर लॉ फर्म को सीधे अदालत में याचिका दायर करने के बजाय पहले अपनी शिकायत लेकर सरकारी अधिकारियों के पास जाने को कहा.
न्यायमूर्ति शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा, ‘‘यह जनहित याचिकाओं के सिलसिले में गलत चलन है. यह नीतिगत निर्णय है.’’ अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘‘ याचिका दायर करने से पहले आप सरकार को अपना आवेदन दीजिए कि यह मेरी शिकायत है, लेकिन आप तो सीधे अदालत आ गये। पहले आपको आवेदन (प्रतिवेदन) देना है.’’ अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि बुलडॉग, रोटवाइलर, पिटबुल, टेरीयर्स, नियोपोलिटन मास्टिफ जैसी नस्ल ‘खतरनाक कुत्ते’ हैं तथा भारत समेत 12 से अधिक देशों में उनपर पाबंदी लगायी गयी है लेकिन दिल्ली नगर निगम अब भी उन्हें पालतू जानवर के रूप में रखे जाने के लिए उनका पंजीकरण कर रही है.
याचिका में इन नस्ल के कुत्तों द्वारा अपने मालिकों समेत लोगों पर हमला करने की कई घटनाओं का जिक्र किया गया है.याचिका में कहा गया है , ‘‘ पिटबुल, टेरीयर्स, अमेरिकन बुलडॉग, रोटवाइलर, जैपनीज टोसा, बैंडॉग, नियोपोलटन मास्टिफ, वुल्फ डॉग, बोयरबोल, प्रेसा कैनेरियो, फिला ब्रैजिलिरियो, टोसा इनु, केन कोरसो, डोगो अर्जेटीनो और उपरोक्त कुत्तों के संकर नस्लों के कुत्तों को रखने के लाइसेंस पर पाबंदी लगाना और उन्हें रद्द करना समय की आवश्यकता है.’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)