नयी दिल्ली, 27 नवंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि दिल्ली सरकार केंद्र द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य योजना के तहत वित्तीय सहायता कथित तौर पर स्वीकार नहीं कर रही है।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि यह “अजीब” बात है कि दिल्ली सरकार केंद्र की सहायता स्वीकार नहीं कर रही है, जबकि उसके पास स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए “पैसे नहीं” हैं।
पीठ ने कहा, “आपके विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन इस मामले में आप सहायता लेने से इनकार कर रहे हैं... आपकी कोई भी मशीन काम नहीं कर रही है। मशीनों को काम करना है, लेकिन वास्तव में आपके पास पैसा नहीं है।”
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने कहा, “आज आप नागरिकों को 5 लाख रुपये देने से इनकार कर रहे हैं। मैं स्तब्ध हूं।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सात सांसदों ने आप सरकार को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) लागू करने का निर्देश देने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया है।
सांसदों ने अपनी जनहित याचिका में कहा कि दिल्ली एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश है, जहां वंचितों के लिए लाभकारी स्वास्थ्य सेवा योजना अभी तक लागू नहीं हुई है जिससे वे 5 लाख रुपये की आवश्यक स्वास्थ्य कवरेज से वंचित हैं।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने टिप्पणी की, “मैं खुलेआम अदालत में कह रहा हूं कि आप लगभग दिवालिया हो चुके हैं..आपके स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आप केंद्रीय सहायता स्वीकार नहीं कर रहे हैं।”
अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 28 नवंबर की तारीख निर्धारित की ताकि दिल्ली सरकार के स्थायी अधिवक्ता याचिका का अध्ययन कर सकें, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह याचिका “गलत धारणा” पर आधारित लगती है।
इसने कहा कि केंद्रीय योजना नागरिकों के एक विशेष वर्ग को दी जा रही सहायता मात्र है तथा दिल्ली प्रशासन के भीतर मतभेदों को दूर करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
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