नयी दिल्ली, 15 जनवरी विदेशों में तेल-तिलहनों के दाम में गिरावट के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह खाद्य तेल-तिलहन के कारोबार में नुकसान का रुख देखने को मिला। दूसरी ओर निर्यात और खाने की स्थानीय मांग होने के साथ-साथ किसानों द्वारा मंडियों में रोक-रोक कर माल लाने से मूंगफली तेल-तिलहन के भाव थोड़ा मजबूत हो गये। सामान्य कारोबार के बीच बाकी तेल-तिलहनों के भाव पूर्वस्तर पर ही बने रहे।
बाजार सूत्रों ने कहा कि स्थिति ऐसी है कि बंदरगाहों पर सस्ते हल्के और पामोलीन तेलों की भरमार है जबकि इसके कारण देशी तेल-तिलहन (ज्यादातर हल्के तेल हैं) के दाम पर भारी दबाव है और इन तेल-तिलहनों का बाजार में खपना दूभर हो गया है। जैसे सरसों तिलहन और अभी आई सोयाबीन की फसल नहीं खप रही। कम दाम पर किसान बेचने को राजी नहीं हैं क्योंकि पहले उन्हें बेहतर कीमत मिली हुई है। ऐसे में किसान थोड़ी बहुत मात्रा में अपनी फसल मंडियों में रोक-रोक के ला रहे हैं। लेकिन असली दिक्कत तेल उद्योग की है कि जिन्हें तेल पेराई करने में भारी नुकसान है क्योंकि सस्ते आयातित तेलों से उनके अधिक लागत वाले तेल टिक नहीं पा रहे हैं। इससे मिलें बंद होने के कगार पर हैं। काम नहीं होने के बावजूद उन्हें बैंक ऋण और बाकी रोजाना के बिजली, वेतन, मिलों की देखरेख के खर्च का बोझ उठाना पड़ रहा है।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) व्यवस्था को दुरुस्त करने का कोई उपाय करना चाहिये क्योंकि इसे खुदरा लागत की तुलना में मनमाने तरीके से तय किया जाता है। दूध के दाम पूरे देश में लगभग एक समान होते हैं लेकिन ऐसी स्थिति खाद्य तेल के मामले में नहीं है कि उसके मूल्य निर्धारण का एक निश्चित दायरा हो। इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिये और संभवत: इसी की वजह से वैश्विक खाद्य तेलों में भारी गिरावट आने के बावजूद खुदरा में उपभोक्ताओं को गिरावट का लाभ नहीं मिल पाया।
सूत्रों ने कहा कि यह अजीब विसंगति है कि भारत के अपनी जरूरत के लिए 60 प्रतिशत खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता होने के बावजूद हमारे पास तेल-तिलहनों के स्टॉक बचे रह जाते हैं यानी देशी तेल-तिलहन के लिए बाजार का माहौल ठीक न होने से हमारे स्टॉक खप नहीं पा रहे। इस ओर सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि बंदरगाह पर सोयाबीन, सूरजमुखी तेल के आयात का हमारा खर्च 102-103 रुपये लीटर बैठता है और ग्राहकों को यह तेल खुदरा बाजार में 125-135 रुपये लीटर मिलना चाहिये। लेकिन देश के किसी भी कोने में जाकर खुदरा कीमत का जायजा लें तो यह पौने दो सौ या दो सौ रुपये लीटर तक के अधिक दाम पर बिक रहा है। मॉल और बड़ी दुकानों में ग्राहकों को ये तेल, अधिकतम खुदरा मूल्य मनमाने ढंग से तय करने की वजह से, ऊंचे दाम पर खरीदना पड़ता है। सूत्रों ने कहा कि समय रहते इन विसंगतियों की ओर ध्यान देकर पहल करनी होगी नहीं तो एक बार किसान सरसों और सोयाबीन के मामले में झटका खायेंगे तो फिर उनका भरोसा लंबे समय तक डगमगा सकता है।
सूत्रों ने कहा कि मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे छोटे छोटे देश भी अपने तेल-तिलहन उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी नीतिगत बदलाव समय-समय पर करते रहते हैं। तेल-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए प्रयासरत भारत को भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। हमें इस संदर्भ में सबसे पहले तो शुल्कमुक्त आयात की छूट समाप्त करनी होगी और इन आयातित तेलों पर आयात शुल्क लगाने की ओर ध्यान देना होगा। छूट से तो खुदरा बाजार में, न तो ग्राहकों को, न ही तेल उद्योग को और न ही किसानों को कोई फायदा मिलता दिख रहा है। सोयाबीन के शुल्क मुक्त आयात की समयसीमा एक अप्रैल से खत्म हो जायेगी पर सूरजमुखी पर यह छूट जारी है और इसे भी बंद करने के बारे में सोचना होगा।
सूत्रों ने बताया कि खुदरा में मूंगफली तेल के 900 ग्राम के पैक पर हमें लगभग 170 रुपये की लागत बैठती है मगर इस पर एमआरपी 240 रुपये छपा है। यही छोटी-छोटी बातें तेल कीमतों के सस्ता न होने की वजह हो सकती हैं।
सूत्रों ने कहा कि देशी तिलहन से हमें खल और डीआयल्ड केक (डीओसी) सस्ता मिलेगा जिससे पूरा दूध उद्योग और मुर्गीपालन का क्षेत्र अभिन्नता से जुड़ा हुआ है।
सूत्रों ने कहा कि भारत सरकार की तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने की मंशा उचित है। इस दिशा में सरकार को अपने देशी तेल-तिलहन के हित में अपनी सारी नीतियां बनानी होंगी ताकि देशी तेल-तिलहनों की खपत बढ़े और किसानों को लाभ मिले।
सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का भाव पांच रुपये की साधारण गिरावट के साथ 6,880-6,930 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 350 रुपये की हानि के साथ 13,300 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 55-55 रुपये घटकर क्रमश: 2,025-2,155 रुपये और 2,085-2,210 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने का भाव 150 रुपये टूटकर 5,550-5,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि सोयाबीन लूज का थोक भाव 150 रुपये की गिरावट के साथ 5,295-5,315 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के दाम भी क्रमश: 350 रुपये, 300 रुपये और 250 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 13,200 रुपये, 13,100 रुपये और 11,550 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।
किसानों के कम भाव में बिकवाली नहीं करने और निर्यात के साथ स्थानीय खाने की मांग के कारण समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों में सुधार देखने को मिला। समीक्षाधीन सप्ताहांत में मूंगफली तिलहन का भाव 40 रुपये बढ़कर 6,675-6,735 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पूर्व सप्ताहांत के बंद भाव के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 130 रुपये बढ़कर 15,780 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 10 रुपये बढ़कर 2,490-2,755 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
प्रसंस्करण की लागत को देखते हुए मांग कमजोर होने से समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) में गिरावट आई और इसका भाव 250 रुपये की हानि के साथ 8,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली और पामोलीन कांडला का भाव क्रमश: 600-300 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 10,000 रुपये और 9,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
राजेश
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